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बाबू देवकीनन्दन खत्री रचित
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बाबू दुर्गाप्रधाद खजन्नी हार!
प्रकाशित ।
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पहिछा हिस्सा ।
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पहिला बयान |
४ कस वक्त जडुल कैसा भयानक मात्दूम पड़ता है।
चांदनी ने ते! ओर ही रकु अमाया है, पेड़ों में से
जमीन पर पड़ती हुई दूर तक दिखाई देतो है, बीच बो'
हुए पेंड़ी की धुक्षियां निगाहें के सामने पड़ कर मेरे
वाथ क्या काम करती हैं, में हो जानता हूँ ॥7
धीरे घीरे यह कहता हुआ बीस बाईस वर्ष के सिन का
' बड़े भारी और डराप्नने जड़ुरू में इधर उधर घुप्त रह
शरेस्दमाइनी 5
कि
गारा रहू, हर एक अड्ः स्लाफ और सुडौल, चेहरे से जवॉमर्दों
ओर बहादुरी बरस रही है, सगर साथ हो इसके फिकू और
डदासी भी उसके खूबसूरत जेंहरे से मालूम पड़ती है ॥
.. घूमते घूमते इस सैज़वान वहादुर के कान मैं एक दर्दनाक
रोने की आवाज भाई जिले सुनते ही बह चोंक डठा और इधर
उधर ध्यान लगा कर देखने रुगा मगर फिर वह झावाज न सुन
पड़ी ॥ ,
* यह दर्दनाक आयाज ऐसो न थी जिसे खुन कर कोई भी
अपने दिल की सम्हाल सकता । नौजवान बहादुर तो एकदर्म
परेशान ही गया, क्योंकि बह जितना दिलेर वो ताफतचर था
शतना ही नैक वो रहमदिल भे था। आवाज कान में पड़ते ही
आह्ूम ही सया कि यह किसी कमसिन भीरत की आवाज़ है
जिसपर झुत्म ही रहा है, इससे और भी न रहा गया और इसी
क्षाकज़ की सोच पर पश्चिम की तरफ चल मिकत्य ४
थीड़ी ही दूर जाने पर फिर बैसी हो दर्दताक आवाज इस
बहादुर के बाई तरफ से आई जिसे खुन यह बाई तरफ मुड़ा और
थीड़ी ही देश में उस ज्ञगह जा पहुँचा जहाँ से बद पत्थर जैसे
ऋलेजे को भी गला कर बहा देने वाली भावाज आ रही शो #
चहां पहुंच कर इसकी तवियत और भी घबड़ाई, खौक,
सायकुब श्षोर गुस्से से अजब हालत है। गई, कलेजा धक घक
ऋषने छमा क्योंकि इस जशह पर शेसा ही कौतुक देखा [|
पहष्टिफा हिस्सा;
जिस जग पर यह जवान पहुँच कर खड़ा हुआ इसके
सामने ही एफ बड़ा पीपछ कः पेड़ था इस जाघी शत के खन्चादे
मैं हवा के लगने से जिसकी प.क्तेयां खड़खड़ा रही थीं | डी
पेड़ की एक मोटी डारू के साथ एक छाश रूटक रही थी जिसके
पैर में रस्स; बँधी हुई थी और सिर नीचे को तरफ था| इसी
को देखकर हम,रे नाजवान बहादुर की वह दशा भई जैसा कि
हम ऊपर लिख चुके हैं ॥
उस लाश को देखकर नैाजवान ने स्थान से तछवार खच ली
जो उसके कमर में रगी हुई थो ओर आगे बढ़ा, पास जाने से
मालूम हुआ कि यह छाश औरत की है। साड़ी उसकी जमीन
पर छूटक रही थी और कई जगह से बदन नड्ुग हो रहा था,
दोनों हाथ भी नीचे की तरफ छटक रहे थे ॥ २
वह बहुत गौर से उस काश को देखने रूगा, इतने हो में हथा
का एक तेज झटका आया जिसके खबय से पेंड कौं तमाम
छोटी छोडी शाछियां हिल हिल कर झेका खाने रूगीं अ.श वह
डाली भी जो चन्दमा की रोशनी को उस राश तक पहुंचने
नहीं देती थी जोर से एक तरफ को हर गई और चन्द्रमा की
शेशनी बहुत थेर्डा देर के लिये उस छाश के ऊपर आ पंड़ी ।
खाथ ही नौजवान फे विदकुछ रेगटे खड़े है। गये क्योंकि उस
ओश्त का चेहरा जे पेड़ के साथ वेहाश उररी लटक रही थो
जस चाँद से किस्ती तरह कम न था शिसकी रोशनी मैनक्षण अब
सरेस्द्रसी हमी -
अर. .2मरकमेनयलस३७» ५०००
7
हे डे
'के लिये उसके बदव पर पड़ कर उसकी हालत नाजबान की
दिखा दी थी ॥ हे
नाजबान को इस चांद की रोशनी में एक बात और लाकुब
की पदिखलाई पड़ी, बह उदयी छथ्की हुई भोश्त चिल्कुल अदाऊ
जैबरः से छदी हुई यो जिसे देख कर नेजदाज़ के खयाल कई
तरफ है पड़ने छरे |
जल्दी से उस लाश के पास जाकर देखने लूगा कि इसमें
कुछ, दमन है. या नहीं | नाक-पर दाथ उक्स्ा, सांस चर रही थी
आत्म हुआ कि यह नाजुक शर्त अभो तक जीती है । अद
इसकी तबं-यत, कुछ खुश हुई और इस बात पर कप्तर बांध कि
जिस तरह है। सकेगा इसे उतार कर इसकी जान बचा ऊंगा और
“उस दीतान के दड्चे को पूरी सज़ा दूँगा किसने इस औरत के
साथ ऐसी बुराई की है ॥
यह सेफ्य कर बह कैजवान बहादुर पेड पर चढ़ गया और:
बहुत दाशियारों के साथ उस रस्से को खोला जिसमें बह
औरत छटक रही थी। उसे भरे से जमीन पर छोड़ अप भी
नीचे उतर आया-और उसकी रांग से रस्सी खोल सीधी कर
पेड. के साथ खड़ा कर दिया मगर हाथ से धामे रहा जिसमें
उसके बदन का तसत्म खून ज्ञो बहुल देर तक उच्दे लूटके रहने
के सबब से सिर की तरफ उतर आया था लौट कर तमाम बदम
मैँ.कैल ज्ञाय ॥ «
श्र
मु पहिला हिस्सा।
कुछ देर बाद् उस औरत ने आंख खेली और बैठना चाह ॥
बहादुर नैजवान ने घीरे से पेड़ के सहारे उसे बैठा (दिया
आर पूछा कि अव मिजाज कैसा है? जिसके ऊधाव में वह कुछ
मे बोलो, हां भाख उठा कश चन्द्रमा की तरफ देखा फिर सिर
नीचे करके बहुत घीरे घीरे वोछने छगी।--- ध
ओरत० | आपने मेरी जाब दचाई इसका यदला में किसी
तश्ह पर नहों दे रूकती, रगर ऊन्म भर आप के जूठे बर्तन
मांज तो भी पूरा नहों ही सकता ॥ ५
'नोजबान०। इसके कहने की कोई जरूरत नहों, मैंने तुम्हारे
साथ कोई नेकी नहीं की वहिक मैंने अपनी भद्ाई की कि अपने
को पाप का भागी होने से बचाया, मैंने अपनो जान रूूड़ा कर
तुम्हारी जाब नहीं बचाई, राह चलते चलते इस जगह अः
पहुँचा ओर तुमकी इस हालत में देख कर जो कुछ ही सका
कया, मैं क्या कोई पत्थर के कछेजे बाला भी इस ऊगह
आकर तुम्ह:री सी औरत को ऐेसी दशा में देख बिना बचाये
कहीं जा सकता है? छिस पर जो ऊरा भी जनता होगा कि
ईएचर कोई अज है उससे तो स्वप्न में भी कभो पऐेसा न होगा
इस टिये मैंने अपनी भलाई की कि अपने को र,्षस कहलाने
से बचाया ॥
इसमे में कई दफे दवा के फोंके आये और उस पीपल को
डाटियों ने हृट हट कर चन्द्रमा क्रो रोशनी को उन देेगों तक
मेल ६
पहुँचने दिया जिससे एक को दूसरे ते कुछ अजञ्छी तरद देखा
और हर दफे उस नाझु कफ ओरत ने मोठी मोठो बातें कहते उ्
नीजबान को सूरत को देख देख सिर नीचा कर लिया और
खतबम हीने पर जबाब दिया ॥
« ओ०। मुझे इतनी बुद्धि नहीं है कि आपको इन बातों का
जवाब दूँ आखिर मैं तो भरत हूं हां में इतता कह सकती हूँ
कि आपने मेरे साथ जो कुछ किया उसे में ही जानती हूं कहने
की सामध्य नहीं अर बहुत बातें करने का यह मोका भी नहीं
क्योंकि अगर हम लोग यहाँ देश तक रहेंगे तो 'हम तीनों की
आन बुरी तरह जायगी ॥
नग्जवान० । (ताझुब से ) यहां पर तो सिदाय हमारे और
' लुख्ड्डार वीसरा कोई भी नहीं है! तुमने यह कैसे कहा कि तीनों
की जान जायगी ?
“ शौरत० । ( ऊँची सःस छेकर ) हाय | सेरो बदिन भी इसी
जगद है ॥
नोजबान०। (चोंक कर) हैं यहां पर तुल्हारी बहिन कहां ?
जरूर बताभो जिसमें उसके बचे को भी फिक्र की जाय ॥
ओऔरत० | ( हाथ से बतला कर ) इसी जगह है |
मौज०। अगर जमीन में गडी है तो वह कब की मर यई होगो॥
' औरत | (व्यस्ट्रमा की तरफ देख कर ) नहीं नहीं, उसे
गंडे थद्दुत देर नददों भई है, मुझचों” रूटकाने के बाद बव॒साशों
डा
पह्िला हिस्सा)
कक लम- --नआ
ब््पा
में उसे गाड़ा है, सिचाय इसके यह एक बड़े लम्बे जोड़े संदुक
में रख कर गाड़ी गई है ज़रूर अभी तक जीती होगी ॥
इतना खुनते ही नौजवान वहां से उठ खड़ा हुआ और उस
औरत की यताई हुई ज़मीन को खंजर से खोदने छशा और
बह नाजुक औरत अपने हाथों से मिट्टी हटाने लगी ॥ | -
सनन््दुक बहुत नीचे नहीं गाड़ा गया था इस छिये उसके
ऊषर का सख्ता बहुत जददू निकछ आया ॥
सन्दुक में ताला नहीं था। नौजवान ने आसानी से उसका
ला उठा कर किनारे किया और दोनों ने मिछ्कर उस औरत
को सन्दुक से बाहर निकारा जो उसके अन्दर बेहोश पड़ी
हुई थी । इसके बदन में सी कुछ जड़ाऊ गहने थे और साड़ी
भी बेशकीमत थी मगर चेहरा साफ नजर नहीं थाता था तो
भी कुछ कुछ चन्द्रमा की रोशनी उसकी खूबसूरती की छिपे
शहने नहीं देती थी ॥
सन््दूक के बाहर निकलने और ठएढी ठश्ढी हवा लगने पर
भी दो घड़ी के बाद उसे होश आया तबदक नौजवान और
माझुक औरत अपने रूमाछ और आंचल से उसके मुंह पर हवा
करते रहे
होश आते ही उस औरत ने चौंक कर नौजवान और
नाजुक औरत की तरफ देखा और धीरे से योली, “बहिन :
मेरी यद व॒ुशा कैसे हुई (“उसने जवाब दिया, ” ग्रद अक ईन
नरेभ्द्रमा हनी
हा * डर नी
सब बातों के पूछने का नहीं है । हम छोग। को चाहिये कि
सियाय भागने के और कुछ न करें बहिकजब तक दू रत निकरूू
जाये बात तक न करें, हा जब ईएवर दम हो गो की किसो हिफा-
जन की जगह पहुंचा देगा तव खब कुछ कड खुन लेंगे ॥
- इतना छुनते ही वह उड बैठी आर इधर उधर दे खकर फिर
बोलीः---
बहिन * क्या हमलोंग ऐजी जगद फंते हैं कि सिवाय भागने
के भोर कुछ नहीं कर सकते आर फेसाहों ते में भागते को
नैयार हूँ मगर इतना ती बता दो कि यह नोजबान जो सुम्शारे
धास बैदा है कोम है शोर मेरे बगल में यह गडदा के सा है जिसमें
सनन््दूक सा दिखाई पड़ता हैं ॥
, आऔ०।! में घाप ही नहीं जान वी के यह बहादुर जिसने हम-
स्थोगों की जाब बचाई है कान है, हां इस मड़हे ओर सन््दूक
का हाल आनती हूँ मगर इस चक सिवाय भागते के झुसे और
कुछ नहीं सुझता, अगर तुक्दारे में सागवे को ताकत न हो तो
डठा कर तुखारे यहां से विदा के जाने को क्िक्र को जाय ॥
दूसरी अरश्त०। नहीं चढ़ीं, अव्र मैं चूबी तुन छो गे के साथ
चल सकती हूं, लो चक्तो में तेयार हूँ । यह कह उठ खड़ी हुई
और चलना चाहा ॥
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पहिला श्थिदा । *
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दूसश बयान | हे
5 नों उस जगह से थीरे धीरे रवाना हुए । नौजदान
ओरत ने ज्ो पेड़ से उत्तरी गई थी कहा, सुझे भागे
चलने दो क्योंकि में बहुत जद्दु यहां से निकल चलने का श्ता
ज्ञानती हूं, तुम दोनों चुपचाप मेरे पीछे पीछे छले आओ । “४
नोजब्रःन जओोरत आगे हुई भर सीछे पश्चिम को करफक खल*
निकली । ये दीनों थी छुपलाप उसके पीछे प/छे जाने लगे ॥
घड़ी भर चलने के बाद ये तीनों एक नदी के कियारे पहुंचे
जिखका पत्ट बहुत चीोड़ा ल था मगर इतना कम भी न था कि
किसी का फेंका हुआ प्रत्थर वा ढेला उस घर पहुंच सकठ। ॥
छौटी छोटी दे! खूबसूरत कि शितियां किनररे पर खरे से बची
हम विखाई पड़ी जिस पर इसके हलके डांडे भी ऊँने के किये
डे थे | माहुक औश्व उस जयह जड़ी हा।गई और अपने पीछे
शा बाले देसो के! कहा कि जब्दी इसमें से कियी एक किश्ती
गए संचार हो से! देश मत करे यह सुल नोजवान ने कह, पहिले
तुम देने! सवार है। लो फिर में भी सवार है| जाऊँगा ।” यह
कहे अपने हाथ का सहारा दे देने मरते के। किश्ती पर सवार
ऋराया मगश जब खुद चढ़ेने सूगातलबव उस नाजुक आश्त ने
शेका और रहा, “पहिलेल्डस दसरी किझती के फिल्ारे से
7]
पेल्द्रमे हरी बे क
22222
खेल कर इस किश्ती के साथ बांघ ले तब तुम सवार है| क्यों-
कि उस किश्ती के भी मैं अपने साथ लेती चलुँगी ॥?
नेजवान० । दूसरी किश्ती के इसके साथ बांध कर के
चलना देफायदे है और हमारी फकिश्ती उसके साथ बँधने से
उतनी तेज्ञ न चल सकेगी जितनी अकेली ॥
. औरत ०» नहीं, जे में कहती हूं उसे करे, इसका सबय सुम्हें
भाल्तूम नहों, बस अब बहुत देर करने में हर्ज़ हेशगा जल्दी उस
किश्ती केत भी इसके साथ बांधकर तुम सवार है| जाओ ॥
ब्र।जवान ने यह साचकर कि शायद इसमें कोई भेद है। उस
दूसरो किश्सी के किनारे से खेल अपनी किश्ती के साथ बाँघा
ओर खुद सबार है।कर किश्ती किनारे से हटा दिया और कांड
फेकर खेने गा ॥
. औरत+ | अब मेरा जी ठिकाने हुआ और ज्ञान बचने की
उ्मेद् हुई, यह सब आप ही की बदौलत है, अब आप इस
ट्श्फ आकर वैथधिये में किश्ती खेकर के चलती हूँ ॥
नैज़बान+ | चाह | में बहू और तुम किश्ती खेझों | यह भी
खुद कही, बस तुम देने चुपचाप बैठी रहे देखा में कितनी
तेञ्ञ इसे ले चलता है ! तुम छोगे के ले। अभी तक है।श भी
ठिकाने नहीं हुए होंगे । हां, यह ते। बताओ कि अभी तक ते।
मुझको तुम तुम” कहकर पुकारती रहीं प्रगर जब से फिश्ती
पर सवार हुई है। कई दफे मुझे आप ऋकहके तुमने पुकारा इसका
ं पहिला हिस्सा $
क्या सबब है ? तुम्हारी बातचीत से साफ मालूम होता है कि
तुम पढ़ी छिखी है। अगर ऐसा न होता ते मैं इस बात का
खयाल न करता ओर कभो तुमसे यह सवाल न करता ॥
उन देने औरतें ने इसका जवाब कुछ न दिया वह्कि
भुस्कुरा कर सिर नीचा कर लिया ॥
न्ाजवान० । भला किसी तरह तुम देने के चेहरे पर हँसी
ते दिखाई दी ॥
ओऔरत+ । अब हमछेग कुछ दूर निकल जाये हैं अगर यह
किश्ती जे। हमारी किश्ती के साथ देँधी हुई चली आती है डुबा
दी ज्ञाय ते हमलेग पूरे तार पर निश्चिन्त है। जायेँ ॥!
नाजवान०। इस दूसरी किश्ती के अपने साथ काने का सबय
अय में बखूबी समभ गया, जहां तक है। इसे जल्द डुबा ही देनः
साहिये से! भी इस तकींव से कि हमारी किश्ती के! केई
उक्सान न पहुँचे ॥ हे
यह कह नैाजवान ने डांडू खेना बन्द कर दिया आर अपनी
फकिश्ती से उतर कर उस किश्ती पर गया जे। पीछे दँधो हुई थी
तथा कमर से खज्जर निकाछ एक हाथ जैर से उसकी पेंदी में:
भारा जिससे सूराख हँ।कर उसमें पानी आने लगा, बाद इसके
माजवान ने अपनो किश्ती में आकर उसे खेल दिया और घीरे'
से खेकर अपनी किश्ती कुछ आगे बढ़ा छे गया ॥
देखते देखते उस किश्ती में जेल भर आया और वह*हूय
हि. छः
* अश्ण्ट् माहनी हम
गई। अब नोजवाल ने अपनी किश्ती खूब तेजी से भें बढ़ाई ॥|
नदी का जक विदकुल उहरा हुआ मात्युम हे।दा था जैसे
किसी ने फर्श बिछाया हो | चन्द्रमा भी अपनी पूर्ण किरणों से
साफ धास्मान में उसा हुआ था । ये तीतों किश्तो पर बैठे चले
जाते थे । तीने। भोजचान, तीमे खूबसूरत, तीने। नाजुकबंदन,
आपुस में देख देख कर खुश होते, मुस्कुराते शोर हांड चलाये
अरे जाने थे ॥
नाजुक भरन ने हंस कर हमाए नोजवान बहादुर से कहा,
“बस अब हमलकेाणों के किसी का 5र और खाफ नहीं है, किएसी'
के। धीरे भ्रीरे धहने दीजिये और मेरे पाल आकर यैठिये ॥?
वैाअयान भी यही चाहता था कि इम देने! के पास गैठ
'कर बातचीत से माछूम करे कि ये दोनों कान हैं, क्योकि अब
आऋत करते का मै।कः ऊहुत अच्छा है । अस्तु डांडा स्वेना वन्द्
कर दिया बहिक उसे उठाकरण फिश्ती में डाछ दिया भर खुशों
खुशी उस जगह आकर बैठा जहां वे देने ओरते बेटी मुस्कृरा
श्ही थों ॥
तीसरा बयान ।
कि एसी धीरे घीरे बहने रूगी । ने.जब.न मे देपने। औरते।
की दरफ देख कर कटा कि अब हम विश्कुल बेखेः फल है ,
मुझे ते किसी का डर न था मगर तुम केगें फे सबद से डरना
पड़ग, अब सुम दाने का हाल जाने बिना जी बहुत ही पेचेन है।
ग्हा है ओर इससे अच्छा समय भी बातचीत करने का न
मिलेगो। ॥
नाहुक यौरत७ । पहिले भ्राप कहिये कि आपका क्या नाम
हें, कहां के रहने वाले हैं और उस जड्भल में ( कांप कर ) ओफ
याद करते कछेजा दृहलता हैं--आप कैसे पहुंचे ! ह
नै।जबान० | पहिले तुमके अपना दाल कहना चाहिये
अर्योकि तुम्ह'रे पूछने के पहिले ही में यह सवारू कर चुका हैं,
सिचाथ इसके मेरा काई घिचित्र हाल नहीं है, हां तुम दोने की
हालत जब याद करता हैं बदन के रोंगटे खड़े है। जाते हैं । हाय !
उसका कैसा कऋलेजा था जिसने तुम दाने के साथ ऐसा सल्ूुक
किया ॥
इसरो प्रौरत० । जि जमीन से निकाली गई थी) हा चहिल
' पहिले तुमही अपबा दाकु कहे! क्येंकि मैरी तवीयत यह, खुने
विना बहुँत दी धबडा रही है कि मेरी कह दशा फिरूने की थी मे
“नयन्द्रमाहनी ३
पथ (4०५
नाजुक औरत० । अच्छा पहिले में ही अपनी रामकहानी
कहती हूं ( नैज़ञवान को तरफ देख कर ) आप भोौर कुछ हाल
न॑ कहिये तेः नाम ते पहिले बता दीजिये जिसमें बात करने या
घुकारते का सुवीता है। ॥
« नाजवान० | इसका कोई मुजायका नहीं, छुने मेरा नाम
“नरेच्धू ” हैं। बस अब जब तक तुम देने का हाल न मालूम
होगा में और कुछ न कहूँगा |
नाजुक औरत०। ह? हां, अब आप दिल ऊूगा कर मेरा हाल
सुनिये, में कहती हूँ ॥
इन केगे। ने किश्ती खेना बन्द कर दिया था और एक
दूसरे की बात में इतना लोन हो। रहा थ/ कि किश्ती की चार
और बहाव का कुछ खबारू न रहा और बह बहती हुई कुछ
किनारे को तश्फ है। गई ॥
अभी ताहुक औरत ने अपना किस्सा कहना शुरू नहीं किया
था कि इन छोगे की क्रिश्ती धक घने पीपल के पेड़ के नीचे
पहुंचो जे। नदी के किनारे ही पर था ॥
इन छोगे! की किश्ती उस पेड के नीचे पहुँची ही थी कि
ऊपर से आवाज़ आई, “भरा नरेन्द्र : लेजा भगा के, अब यारों
की फिक ये हेकी मगर हम भो तुम्दारे ओस्ताद ही सिकले
शास्खा ही आकर बन्द कर दिया। भला अब आगे जा ते सही
देखें कितना हासला रखता है ॥” हे न
५ पहिका हिस्सा !
हे
इस आधाज के सुनते ही वे देनों औरतें डरीं मगर हमारा
बहादुर नोाजवान एकदम हँख पड़ा जिससे देने औरतें के
बड़ा ताज्जुब हुआ, क्येंकि इस आवाज के खुनकर ये घबड़ा
गई थीं, उनके पूरा विश्वास है। गया था कि काई हमलेगे। का
कुश्मन आ पहुँचा, डर के मारे बदन काँपने छगा था मगर हमारे
चहादुर नै।जवान नरेन्द्र का हँसते देख इन दे।ने की और हे
हालत हागई और उनके मुह की दश्फ देखने रूगों । नरेन्द्र ने
हंसकर कहा :--- मै
“्रबड़ाओ मत देखे में इसे अपनी किश्तों पर चुलाता हैं।?
इतना कह उस पेड़ की तरफ देखा और बे।से :--
“अबे भूतने | अब पेड़ से उतरेगा भी कि ऊपर हो बैठा
रहेगा / आ किनारे पर ॥?
आाबाज० | नहीं अब में नीचे नहीं आने का जाओ अपनी
'क्रिश्ती ले जाभो, हि हि हि हि, किरती के जाना कया हँसी ठट्ठा
है ! छू, ऐसा मन्त्र पढ़ दिया कि सिवाय किनारे ऊगाने के
इस किशती के तुम आगे ले ज्ञा ही नहों सकते । वचाजी तुम
ले खूब जान बचा के भागे थे पर अब कहाँ जाभोगे ! तीन दिन
का भूखा प्यासा में आज़ तुम तीनों के खाये बिना थोड़े ही
छोड़गा ॥
मरैन्द्र> । ( किश्ती किनारे ऊगा कर ) अब उतरेगा कि हूँ
मिर्खे को घूनी ॥ ६ * मे सि
कक
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चेरन्द्रंसाहनीा
हर कुछ $
है|
आवाज० ) अगर मिर्च के खेत ही में आग रूगा देपे नेः
कया होगा ?
सोखस्र० । अच्छा मेरे भाई अब ते। उतरे |
आवाजर । जी हां में ऐेसा बैसः भून नहीं है कि जददी
, उतरूं ॥
ञ्
सरेन्द्र० । उतरता है कि नहीं ॥
आवाज० ; जाता है कि नहों ह
न्द्र० ) राम गम, इससे ते दिक कर हाला, भला यह
से। बताओ तुप्त उतरने क्ये। नहों
खआावाज+ । मर्दज्ञाव तुम रज्ष क्यें है। गये ? जानते हो है;
कि में कितना फुंक फूक के पैर रखता है ॥
नरेन्द्र) । ये। इस चक्त तुम्हें क्रिस चात का डर है ?
अआाबाज्ञ० | यहो कि कहीं सजर न रूस ज्ञाय ॥
। नरेन्द्र | किसकी नज़र ?
आवाज+ । ये देने औरतें मेरों जवानी और पहछवानी
पर नजर लगा देगी ॥
स
इतता सुनते हो नरेन्द्र एकदम खिल्खिक्का कर हँस पढ़ा
बढिक ने देने औरतें मो जे! अमी तक डर के मारे कांप रहो
थीं हँस पड़ी, फिर सेचने छगों ॥
ध्यह कैम हैँ! कया सचमुच काई मृत है ! अगर यह मूल
है ते नपेन्द्र भी फैई पिशाय' ही कषंगे । नहीं नहीं ऐसा नह
बह पहिलाय हिदपा
च्हाा
सेचना चाहिये | नरेन्द्र बदादुरः ओर छाखानी आदमी हैं, अगर
भूत प्रेत वे पिशाच है।ते ते! इसकी परछाहों जे। उच्दमा को
शेशनी से इस किशती में पढ़ रही है न पड़ती और इनके आँखें
की परूक नीचे न गिरती ! यह सब ठीक है सगर यह केस है
जै पेड़ पर चढ़ा हुआ बाल रह' है ओर नीचे नहीं उत्तरता ५.
नरेन्द्र ने बहुत कुछ कहा मगर यह शैतान पेड़ के नीचे न
उतरा | आखिर हंसते हुए नरेन्द्र किश्सी से नीचे उतरे ओर पेड़
के पास आकर येछे, ' उतरता है या काट डा पेड के रैट.
यह कह एक हाथ तलवार का उस पेड़ पर छगाया साथ ही
इसके पेड़ के ऊपर बाला शैतान चिल्लाया, “हां हुई हा हां, ऐसा
काम कभी मत करना, पेड़ भत काटना नहीं ते। में गिर कर मश
ज्ञाऊंगा | ले में आप ही उतरता है तुम दिक मत करे ॥०
नरेन्द्र० । अच्छा फिर उत्तर जददी ॥ * है
आवाज७० । उतरता हूं घवड़ाते क्ये। है। ? क्या" कूंद,.कर
जान देदूं: |
आखिर धीरे धरे चह शैतान नीचे उत्तरा आर नरेन्द्र से
डसका हाथ पकड़ के किश्ती पर छा वैठाया ओर किश्ती के।
किनारे से हटा गहरे जल में छेजा कर बहाव पर छे/ड़ दिया ॥
नरेन्द्र ने जब से उस शेतान केा किश्ती में छाकर बैदाया
तब से उसकी शक्क देख देख देने भौरते! की अजब हालत थी,
मारे हँसी के छेटी जाती थीं बयेकि पेड पर से चह जिस दिल््त
हि है
क्रन्दमाहनी' बे
५ है की
बरो भोर डरावनी आवाज से बेलता था नीचे उतरने पर उसकी
चैसी सूरत न पाई बहिकर उसकी सूरत ऐसी थी कि जे केई
देखे जरूर हँसी आ जाय ॥
प्योस तीस वर्ष का सिन, नाटा कद, छोटे छेोये हाथ पैर,
सीतल्ा मुंह दाग, एक आंख गायब, छाल रडू की शेती, छा
ही रडु का कुरता और टेपी जिसमें गेपटा टंका छुआ था, कौाश्रे
पर एक अँगे।छा, वर में एक बुआ, हाथ में सांस घोटने का
सशण्ड़ा ॥
घेसी सूरत देखकर किसे हँसी न आवेगो ! उन दोने ने
मुश्किल से ईंसी रोक कर नरेन्द्र के हाथ के इशारे से अपने
पास धुलाया ओर धीरे से पूछा +--
“यह कौन है जिस बड़ी चाह से तुम इस फकिश्ती पर
लाये है। १०
नरेन्द्र ० । यह हमारा छड़कपन का साथी है ॥
ओऔरत+ । क्या तुमको ऐसे ही छेगे। का साथ रहा है ?
नरेन्द्र० | नहीं दिल बदलाने के छिये इसका वरावर अपने
साथ रखते रहे, बड़ा खेरखाह है और ज्ञान से ज्यादे हमके
मानता हैं, कुछ थेडा सा बेवकूफ भी है मगर बाज दफे इसे
दूर की सूती है । अब ते यह साथ ही है इसका और हाल
ठुमके रास्ते ही में मालूम हे। ज्ञायगा ॥
८ औश्त० । इसका और 'ुम्दारा साथ कब छूटा ?
पहिछा हिस्सा।
जा
नरेन्द्र) में तो अकेला धर से निकला, यह मुझे हूंढता हुआ
था पहुंचा, देखे में इससे हाल पूछता हूं आप ही मातम है।
जाय गा ॥
ओऔरत७० । इसका नाम क्या है ?
नरेचख्ध ० | इसका नाम सभी ने बहादुर सह रकछा है ॥
वहादुरसिहद का नाम सुनकर फिर उन-दानेई के हँसी आई ह
बहादुर०। क्ये जी नरेच्द्र | यह दे।निए घड़ी घड़ी घुककी देख
कर हँसती क्ये हैं ? कहों मुझे भी गुस्सा आ जाय ते क्या है। १,
नरेन्द्र ० | इसमें रख होने फी कैम सी बात है, जे। के'ई तुझई
दैख कर खुश है। उससे रज्ञ हीना क्या मुनाखिव है !
बहादुर० । नहीं मेंने कहा शायद्-अगर इस देने के। किसी
बात की शेखी है। ते मैं अभी तैयार हुँ आचें कुश्तो लड़के जी"
का हौसला मिटा लें ॥
नरेन्द्र> | वाह औरतें हो से कुश्ती छड़ कर पहलवानी
दिखाओरी ?
बहादुर० | जी हाँ, कलके लड़के है। कमो ओरतने से पाला
नहीं पड़ा है, सुनो ओर मेरी नसखोहत याद रक्त, दस मर्द से'
छूड़ जाना केई मुश्किल नहीं मगर एक औरत का मुकाइछा
करना जरा टेड़ी खोर है ॥
_ नरेन्द्र० | सच है सच है, सठा यह ते कहे! तुप इस जड़ल
में कहां से पैदा है गये? ,. + .-
तक
9]
६4060 208 ८
बहादुर० । तुम ते चुपचाप से मिकलक भागे समझे कि बल
है। चुका अब पता कान लगाता है मगर इसंके भूल ही गये कि
मैं चालीस कम से। कास से तुम्हारी यू पा छेता हूँ | खाजता
खेाजता यहां आही पहुंचा। में तेर डरा ( रुक कर ) राम रास
डरा काहे के! में ते! किसी से कभी डरता ही नहीं, कहने के
कुछ मुह से निकलता है कुछ ॥
, दाने औरत+ । ( हँल कर ) क्या डोंग को छेते है शोखी किये
बिना ने मार्तूम क्या विगढ़ा जाता है, अजी जेसे जड़लछ मैदान
में जहों दजारीं डाकू घूमते रहते हैं बड़े बड़े डर जाते हैं अगर
हुम डरे ते। कानसी वात हैं ॥
वहादुर० | सच ते कहा मगर मैं... ... त...... कहां डरता
ही नी, हां यद कहे सश्रमुच इस जड़छ में डाक शूमा करते है ?
नरेन्द्र ० । बेशक, अभी हमों से डाकुशों से मुठभेड़ है। गई
थी बारे छच गये ॥
बहादुर०। अफसेस हम न हुए पक के सी जीता न छोड़ते.
के थे?
मरेन््द्र> | चालीस पचास ॥
बंहादुर० | बस : इतने से क्या झरना, अदछा इम सब वाले
घें। ज्ञाने दे। मेरी खुने।, अब सवेरा हुआ चाहता हैं, यह किनारे
बाड़ अडुछ भी बड़ा ही रमणीक है चले किशती छगाभो में
भर पीसता हूं तुम भी पीओ इन केने। के! भ्री पिलाओों, यह
कक
ड्
२६ पहिलझा हिहया $
हि
भी क्या याद् करेंगी कि किसी के हाथ की भड़ः पी थी । बल
इसी जगह दिसा फरागत समान पूजा से छुट्टी पाकर फिर जहाँ
खाहे चखना ॥
-: ४अच्छा चछे! » कहकर नरेन्द्र ने डांड उठाया और फिश्ती
का मुंह किनारे की सरफ फेराही था कि किनारे से गीदड़ कै
चिलछाने की आजाज आई ॥ *
बहादुर० । चस बस, नहीं नहीं, इध्चर नहों और भागे चला
यह जड़ुछ किसी काम का नहों, बेपदं है, आगे घने जडुरछ मे
डीक होगा ॥
इतना झुनते ही देने औरतें खिलखिला कर हँस पड़ी.
नरेन्द्र ने भी मुस्कुरा दिया।॥
बहादुर०। बस बात ते! से।चा नहीं और हँस दिया, कया तुस
छेोगे ने समझा लिया कि बहाडुरशिंह गीदड़ की आवाज छुन
कर डर गये ? ऐसा ही डरते ते तुमके खोजने कया निकलते १
मुभाकेा आज रास्ते में ऐसे ऐसे जड्भल पड़े हैं जहां पचास पेड
इकट्ठें एक से एक सठे और घने दिखाई पड़ते थे ॥
बहादुरसिह की इस वात ने तीने के और भी हँसाया,
नरेन्द्र ते। जानते ही थे कि बहाडुरखिह चड़ा डरपेक है मगर
बात यनाने से नहीं चूकता, यह ते। उनकी मुहब्बत में घर से
निकल पड़ा नहीं ते। कभी अकेला दुर जाने बाला थोड़े ही था ॥
नरेन्द्र ० । घस जे। असर बातन्थी तुमने खुद कद्दू वी यह
]
मरेन्द्रमेहनी
जज
श्र
भी भावम है! गया कि तुम बड़े बड़े घने जड्ुले के पार करते
हुए सुकसे मिलते है।, उस छोटे जड्भछ में नहीं पहुंचे जहां में
फैखा था ॥
वहादुर० । जी हां इस में भी कोई कूठ है । फिर तुम किनारे
पर किश्ती लिये ही जाते है। सनते नहीं कि मैं क्या कहता हूँ !!
* नरेन्द्र० । ( कमला कर ) अजब उब्स्द है। क्या खैकड़े। कास
नक जड़ेक ही मिलता ज्ञायगा ? जड्भछ कब का पीछे छूट गया
यह भी कोई जड़ल है ? दस बीस बेरी के पेड़ देखे और फद्
दिया जऊुछ है । अब कौन सा घना जकुछ मिलेगा ? देखता
नहीं आगे बालू ही बालू दिखाई देता है ॥
यहादुर० । वाह ! मुझी का उठत्दू बनाने लगे, मैं ते। खुद
कहता हूँ कि भागे किसी ज#छ के कियारे नाव लूगाओों यंदां
मैदान है ॥
नरेन्द्र० । बस भागे यह भो नहीं मिलेया ॥
नरेन्द्र ने बहादुरसिंह की बकवाद पर ध्यान न दिया, किए ती
किसारे पर छगा कर बहादुरसिंह से उतरने के लिये कहा मगर
वह न उतरा, कहने रूगा, “में इसी किश्तो पर भद्भः बच तुगा
तब उतरूुंगा तुम भी बैठे।, ज़र्दी क्या है अभो ते। अच्छी तरह
सचेरा भी नहीं हुआ ॥?
ओश्त० | अच्छा इनके यहां बैठने दे! इमले।य नीचे उतरे ॥
नरेन्दर० अच्छा चले!
पड्िला दिया ॥
२६ पाॉइहला!) है
नरेन्द्र ने लग्गी गा।ड़ के किश्ती वध दी और हाथ का सहारा
दे देने औरतें के किनारे पर उतरा और उनके बेठने के लिखे
अपने कमर से चादर खोल जमीन पर बिछा दिया ॥
अब से नरेन्द्र ने इन देनिए औरतें के फाँसी और कब्र से
बचाया और किश्ती पर सवार होकर पूरे चन्द्रमा की रोशनी
में इनकी सूरत देखी ठभो से इन पर जी जान से आशिक है।
गया । बे देने औरतें भो पूरी सुहष्बत की निगाह से इनकेः
देखने रूगी बह्कि इनके पाकर अपनो विल्कुछ तकलीफ भूछ
गई और सेत्च लिया कि अब जन्म भर इनका साथ कभी न
छोाड़ेंगी ॥
सीने किनारे प२ बैठे, नरेन्द्र ने कहा, “उस भड्जैड़ी मसखरे
को बातचीत में तुम देने! का हाल भो न खुना ॥?
एक औरत० | क्या हज है दासी साथ में हुई है जब चाहे
इस की रामकहानी झुन झैना अब से! माका हाल कहने का है
नहीं ॥
नरेन्द्र> ! अच्छा हाल क्रिसो दूसरे वक्त सुत्र खोेंगे मगर
अपना नाभ ते इस वक्त बता दे। ॥
एक ओऔरत० । ( जे! पेड़ पर से उतारी गई थी ) जी मेरा
नाम ते मेाहनी है और इसका नाम गुलाब है जिसे आपने जमीन
मे निकाक कर बचाया | «* 5 *.. *
नरेन््द्र० | मेदनी ! अद्दा क्या सुन्दर नास है ॥
जरेजशमाहनी
++>-७३००००--नान +#नकन ९८ ३-नननान |अममक 4.
जब््छा
द््थे
इतने में दूर से कुत्त के सकने फी आचाज आई जिसे छुन
जरेन्द्र में मेहनोी क्री तरफ देखके कहा, 'माछून होता है थद।
पास ही केई गांव है क्पे। कि (ते सिवाय आबादो के भीर क हीं
नहीं रहने | अच्छी बाव है। अगर दस केग जआाज का दिन इसी
साँव में कार्े क्प्रेकि दिन को अ्रूप इस खुलो हुई छे57 किए सी
में नहीं बदाप्ंत हीसी ॥
*« मैाहनी० | आपका कहना सच है मगर हम लेगी का कि सी
छोटे गाँव में रहना उचित नहों इससे ते। शिन भर को घप सह
ऋर इसो किश्ती पर सफर करना ठीक होगा ॥
शुराव० । ( इधर उप्र देख कर ) देखे वह एक नाव की
अह्तूल दिखाई देती हे (उठ कर ) वाह बह! बह तो बड़ी भारो
छाप्पर की नाव है अगर इसे किराया कर लिया जाय ते वहुत्त
अश्छा है।, इसी पर सफर करते हुए हमछेग फकिली शहर में
चढ़े आराम के साथ पहुँच जायेंगे ॥ _ *
नरेन््द्र० । ( खड़े है।कए और उस नाव के देख कर ) हां
ठीक के है ॥
साहनी० । बस अथ देर क्या-है ऊसी नाव को ठीक कीजिये
खअडिये इसी किएसी पर बैठ कर वहां चले ॥
नर ० । अर्भ तुँम छोगें के चहां ले चलना दीक मे थे/ःशा-
क्लीन डिकाला घह नाव खाली हैं या किसी का मार रूदा हैं,
अगद दूरूरे के फिराये में दागी ते भुझे कैसे सिझ छफ्रेगी । तुम
ही पहिला दिरसा।
5 57“
देशनै| अच्छे कपड़े ओर गहने पहिरेही। काई देखेगा ते! क्या सम-
झेगा ? कोई ऐली तकीव भी नहीं हैे। सकती कि तुम देने के
लछिपा कर बहा तक ले चलूं । अगश नाव भरी मे है। ते! उसी
जगह किराये कर लू । इस तरह वहुत आदियों के वीख में
लुभ दोतें के कैसे ले चल्दूं ॥ क
गुराव० । चछिये नाव खाली हुई ते सवार हैः छेंगे नहीं
थे ( लक, कप शक] क्र क्र
हक आगे चल कर कहीं उहस्से शोर आओ का दिल वितायेंगे ॥
मरैन््द्र० । देखे आगे दुर तत्क बालू ही दस्त दिखाई पड़ता
है । कहीं पेड़ का नाम निशान नहीं है कहां ठहरेंगे
घेहनोी ० । फिर आपकी क्या राय है ?
नरेन्द्र 9 । में चाहता हूं कि तुम दे।नें यहां ठदरे। वहाहुरसिंह
भा तुम्दारे पास हैं में बहुत जल्द जाकर उस नाव की देख आता
हूं अगर खाली दागी ते तुम छेहीई के लेजा कर संबाए फशऊूंगा
नहीं ने। इसी जबह लेट कर हम लेः्ग दिन वितायेंगे रात के
फिश चर्छेगे ॥ -
मेहनी० । महीं मैं अब तुम्हार साथ न छेःडुगी-क्या जाने
तुम कहां... ... -.*
नरेन्द्र) वाद | में कहां चला जाऊंगा ? चात की बान में ते
कैश झाता हैं ॥
, मैहनमी० | (आंख डवड्ब! कर ३ में क्यो: ४२२४४ ६ ५०
नरेन्द्र के मेहनी को आाखे में मास डबड़बाने हुए देखा जी
नरच्दमेहनी
ध
छ
श्द्
बेचेन हे। गया हाथ थाम कर बेला; “हैं! बह क्या ? यह आंख
कैसा २
मेहनी कः जी पूरे तैःर से उमड़ आया, शआांसुओं की तार
बैंध गई, हिचकी लेकर बाली, “सन माल्यम क्यें। मेश ऋलेजा
कॉप रहा है, खुद बखुद रोने के जी चाहता है, चल तुम मत
ज्ञाओ इसी जगह दिन काटे जे कुछ होया देखा ज्ञायगा ॥7
नरेन्द्र ने बहुत तरह से मेहनी के। समझा चुका कर इस
बात पर राजी किया कि थे जाकर नाव का हाल दर्थाक् कर
आये ऐप
हमारे बहादुरखह अभी तक भड्भ घीट रहे हैं दीन दुनिया
की कुछ खबर नहीं, यद भी नहीं माल्दूम कि नरेन्द्र, मेाहनी और
शुलाब में क्या क्या बातचीत हुई । देने पेरें से महू पीसने
को कूंडी पकड़े हुए नीचे के है के दाते से दवाये कभी बाई
तरफ कभी दाहिनी तरफ सेंटा घुमा घुमा भज्ञ पीस रहे हैं ॥
नरेन्द्र ने पुकार कर कहा, “जअजी शो बहादुर भड़ी - अभी
तक तुम्हारी भड् तैयार नहीं हुई ? देखे इधर खयाल रकक्खे हम
जाते हैं ॥7
बहादुरसिह ने गुरुूसे की निगाह से नरेन्द्र की तरफ देख
फर कहा, “बस खबरदार | हमके भज्ठी का कहना इतला चुरा
“व मालूम हुआ, जितना सुम्हारे इस कहने का.रज हुआ कि हम
जअते हैं । क्या भजालऊ जे। तुम कद्दों जा सके 'क क्या द्स
था पहिछा' हिस्सा “
श्छ्क
करोड़ नरेन्द्र बन कर आओ तब तो जाने ही न दूं, एक दफे तुम्हें
अकेले छेडडके फल पा लिया, अब क्या में उदत्ू हूं जे घड़ी घड़ो'
ऐसा ही करूँ?”
नरेन्द्र> | अबे कुछ सुनता समभता सी है कि अपनी ही
आँय टॉय किये ज्ञाता है ॥
वहादुर० । बस वस मैं सब खुन सुका और सममभ गया वैडे।
सीधे हाकर |
नरेस्द्र० । भजी में नाव किराये करने आता हूं और कहीं
नहीं जाता ॥
वहादुर० । नाव * कैसी नाव ? यह क्या छकड़। है ?
नरेन्त्र० । ( हँस कर ) यह भी नाव है मगर में बड़ी नाव
छप्पर बाली किशये करने जाता हूँ ॥
बहादुर० । कहां है छप्पर चाही नाव ?
नरेन्द्र० । (हाथ से इशारा करके ) वह देखा ||. «
बहादुर० | हाँ हैं ते ( सेंटा रख कर ) में भी तुम्हारे साथ
चलता हूं. |
नरेन्द्र ० । ( मेहनी भौर शुर्ाब के। बता कर ) इनके पास
कौन रहेगा ?
बहादुर० । तुम ॥
नरेन्द्र: । और तुम किसके साथ जाओगे ?
बहाडुर० | ठुम्हारे साख. -+.- ४. 5
गे द
ध्ी
अन्न वंफा. +
हित |
मरने लिन रे
चहादुरसिह को इस यात ने सभी को हँसा दिया । मेहनोी
जे। उदास बेठी थी बह सो एकदम हँस पड़ी ।
बहादुर० । हँसने की कान वान है ( कुछ सोच कर ) हां हां
शीक है मुझसे गलती हुई में भूल गया अच्छा जाओ सीधे उस
ज्याथ की तरफ चले जाओो में देख रहा है इधर उशच्चर हडे ओर
मैंने डणएडा फेंक कर मारा ॥
“ अच्छा यही सही |” यह कह कर नरेन्द्र उस बड़ी नाच
तरफ ग्वाने हुए, मेहनी और बहादुरसिंह की नियाह बराबर
नरेन्द्र व्हों तरफ थी ॥
दि पह्िला हिस्सा £
धन
चौथा बयान ।
मारा बहादुर नंाजवान इन तीनें के उसी अगह छोड
उस नाव की तरफ चला अर यह इरादा कर लिया कि
उसे किराये करके आराम से अपना सफर तमाम करेगा । इतना
ना मालूम ही है। गया कि उसका नाम नरेन््द्रसिह है अब हमके
भी इसी साम से इल उपन्यास में छिखना ठीक होगा ॥ मं
देखने में वह नाव बहुत पास मालूम देती थी मगर नरेन््द्र-
सिह के वहां पहुंचते पहुंचते पहर सर से ज्यादा दिन चढ़
आया। पहुंच कर उन्होंने किसी आदमी के! उस नाथ के ऊपर न
देखा इस सबव से नाव के पास जाकर अन्द्र की तरफ माँका ॥
यह चाच बहुत बड़ी थी ओर इस लायक थी कि इज्ञार सन'
से ज्यादा बाक छाद् सके | फूस का छप्पर उसके ऊपर झौर
चारो तरफ टह्ियें से घेरा हुआ था । दे चार खिड़कियां भो
देने तरफ इस लायक थीं कि भोतर बैठा हुआ आदमी याहर
की तरफ देख सके । नरेन्द्र सिह का फ्ांकते देख एक आदमी
अन्दर से बाहर निकल आया जिसकी सूरत देखने से यह मालूम
होता था कि यह मल्ाह है, उसने इनसे पूछा कि “आप क्या
साहते हैं १०
जरेंन्द्र० । कया यह माक फ़िराये'हे। सकती है ? , | *
नरेन्द्र मा हनी
४ अचिफिजणण झले०
मल्लाह० | हां हां आप इसे किराये पर के सकते हैं ॥
नरेन्द्र: । इसका मालिक कौन है ?
यह खुन कर मछ्ाह ने अन्दर की तरफ मंह कर “थिहारी !
चिहारी (!» करके आवाज दी । साथ ही धाबाज के एक महाह
' में बाहर निकल कर पूछा, “क्या है १”
'बहिला मलाह० | सरकार नाव किराये किया चाहते हैं ॥
दूसरा । ( मरेन्द्र लिछ की तरफ देख कर ) कुछ साल लादा
, आश्यगा ?
नरेस्ट्र० | नहीं हम दे! तीन आदमी हैं जे! इस पर सवार
है।कर सफर किया खाहते हैं ॥
मंल्लाह 9 । कहाँ नक जाइयैगा। ?
« नेरेन्द्र० | हमलेाग परने तक जायेगे ॥
मल्ाह॒० । ते ज्ापके ओर साथो सब कहा है ?
नरेख्त्र ० । ( हाथ का इशारा करके ) उस तरफ थोड़ी दुर
पर हैं तुम बातचीत कर लो ते बुला छापे ॥
महाह० । सवारी जनानी भी है या सब मदाने ही हैं ?
मरेन््द्र० । हां जनाने मी हैं ॥
महलाह० । भच्छा आइये ऊपर आकर भीतर से नाव के
' देख कोजिये कि जनानी सवारी के खुबोने की भो जगह इसमें
बनी धुई है ? ॥
थद्द कद मद्दाद ने एक काठ को सीढ़ी नीसे गिरा दी और
कह
कक. चल कन्शुट जा
खफडा रस ४6० चद्धाफ स५>मर्वीरत-परममीयो + 'पंफे॑॑पकामककन 3. आओए.... 3 पि+
[75703
बना ५०
4622:
पहि
३१ हक, पं पहिला दस्त )
हाथ पकड़ कर ऊपर चढ़ा लिया और अपने साथ
कु
क्सलाही के बेटे पाया जिनमें पाँच छः ते! बड़ी भयानक
सूरत के थे, उनकी काली काली सूश्त और बड़ी वड्डी भाँखें
देखते हो से डर मालूम हेःता था । एक सश्फ कुछ धेड़ी सी
कुब्दाडियां, गडांसे, नेजे शोर तलपारों का ढेर लगा हुआ था
ओऔर दस यीस गठडियां भो ऐसी पडी थीं कि जिसके देखने
से किली सैद्रागर की साल्यूप है,ती थीं । इन थीजें के देख
नरेन्द्रसिंह के जो में कई तरह के खुन्के पेद। हुए भोर इस नाव
के फकिर,ये करने से इल्कार किया | मलाहीं की तरफ देख कर
ये। डे, “हमले:ग सिर्फ चर आदमी हैं ब.ब बहुत सारी है और
सफर भा बहुत दुर तक का हैं यह जाय मेरे काम फो नहीं है [०
विहारों ने कहा--/एक बाच बहुन छेटी पटी हुई हम. रे सास
ओर भी है अगर उस पर आप खफर करें नै; सिफ एक छी मलाह
आप के पदने तक बचा सकेगा क्योंकि चंह नाव चलने में
बहुत सुवुक है, अगर जरा खा आाप यह ठहरे ते उल नाथ के
यहाँ लाकर दिखला दूँ (०
नरेछु ० | वह नाव कहां पर हैं ?
बिहारं।३ । पास ही है जहां इस नदी का माड़ घूमा है ॥
नरेख्द्रखिद के इस बात का शक ते जरूर हुआ कि ये लेश
डाकू हैं, मगर बिहारी को बात सुन करे कि एक नाव झौर है
नरेन्द्रमेहनी झरर
आज 7 अााा 4
और एक ही आदी आपके उस पर पटने पहुँचा देगा सेनने
खगे कि इसमें हमारा केाई हज नहों, अगर एक आदमी डाक
भी होगा ते। हमारा कुछ न कर सकेगा । बिहारी से कहा---
अच्छा ज्ञाओी उस नाव के! ले भाों मगर जल्द आमसा है?
. बिहारी ने अपने सा थये। की तरफ देख कर कद तुम
काग भी आाओो ते उस नाथ के जल्दी खच छावे ॥%
अपने साथियों के लेकर बिहारी नाव के नीचे उतरा ओर
थेड़ी दृर तक द्रिया के किनारे किनारे जाकर पास के अड़ुल
में यायव है। गया ॥
बिहारी के! गये धररा भर से स्यादा है। घया, नरेश सिह
बैठे वेठे घबड़ा उठे, दूसरे मलाहें गो जे। उस नाव मैं थे बेे,
#जुफह्ारा विहारों नाव लेकर अभी तक न जाया, हमारी साथी
सबड़ा इहे हरे, हम तो जाने है ॥2
* इसके जवाध॑ में एक मंछाह ने कहा, “चढ़ाब की तरफ नाथ
खाने में देश रूमंती ही है, आप जरा और ठहर जायें जाता हो
'है।या ॥
घश्दे भर तक नरेन्द्रसिह और ठउहरे संगर नाथ न आई,
घबड़ा उठे, माहनी व्ही तरफ जो लगा हुआ था मल्ादी की बात
धर ध्यान न॑ दिया नाच से नीचे उत्तर आये और उस तरफ चछे
अहत्पने साधिये। के छिड़ा था
फ्राति"चक््त भी उतनी दी देर हुई यहा तक कि दोपहर है।
पहिला हिस्सा
डंडे
७.४००-»णग#ब्नगड- अर पर दब्बा३+आ०+माम्भन,
चि क
गया जब उस ठिकाने पहुंचे मगर अफसेस | उस बेचारी मेहनी
और उसकी बहिन गुलाब के वहाँ न पाया और अपने लड॒कपन
के देस्त बहादुरसिह के भो न देखा जिसे मड़ घोटने छोड़ गये
थे, हां किश्ती ज्यों की त्वै वहां ही बंधी थी ।॥
चअरन््तमेहनी
लाए फा डे
पांचवां बयान ।
हे हनी, गुलाब झोर अपने दे।स्त वहा दुर सिंह के न देखने
है से नहीं झ मिह के किनन: ताउज्ब, भफसे।स, तरतू-
दुद, फिक्र, गम और सदमः हुआ यह चही जानते होंगे, बड़ा
कर लगी तरफ देखने छगे जब किसी के न देखा ते। बेल,
४ हाय हे उसे जकेसे क्ये। छे.छ गया मेरे ख्विर कैसी कम्बझ्ी
खबार थी जे! दूसरी नाव किशले करने गया ! हाय जिस किदती
ने वेशारी मेहनी ओर गल्ाव की जान बाई शोर जिस किश्तों
गर बैठ कर हम छेग हँसते खेलते यहां तक पहुंचे, उसी के
छाहिता जाहा | परमेश्वर ने इसी व्दी लज्ञा दी । हाय कम्बरद
दिल उस वक्त धूप की सूम्ी | बेच रा मेहना भूए का कुछ
खयाछ न करके इस किएती पर सफर करने के सैथार थी मगर
मुझे मर्मी सताने छगी | अब उसको झुदाई को भाग में देख कन
नक तुझे जलन; पड़ेगा । हाथ | वह कहां बली गई ! क्बः मैका
पाकर भाग ते नहों गई ' नहों नहीं, उसे छिप कर सागने की
क्या जरूरत था हें ता उसे उसके घर तक पहुंचा ही देने वाला
था, मैंने उस्तका क्या बिगाड़ा था कि छिप कर भाग जाती :
फिर बहादुरसिद कहां चछा सया | वह ते। करा साथ छेड़ने
शाला नया! काई दुश्मन पहुंचा जिसके सबव से बेच्ारी मे।दनी
ड््ष पहिलय हिस्ला। दिस्खा ।
ओर गुलाब का फिर दुःख मागना पड़ा, कहीं उन नाव चले
मलाहीं की ते बदमाशी नहीं | सूरत डी से वे ले बड़े दुष और
डाकू मालूम है।ते थे, वे किश्ती लेने नहीं गये घूम फिर घोखा दे
जरूर यहाँ आये और तीनें के ले भरी, क्योकि सुझसे पहिले
हो उन छे,गे। के मात्यूम है। चुका था कि हमारे साथ और्लें
भो हैं और उन्हेंने पूछ, था कि कहां हैं ? दवाथ ! मेंने क्ये। इशारे
से वतलाया कि इस सरफ हैं! जरूर उन्हीं झेगे। की शैतानी
हैं । खैर जब साहनी हो नहीं ते में जोकर क्य। कहंगा इससे
यही वेहतर है (के उन छेरें। से लड़ कर अपनी उगम देह, जे।
है। दे। खार की जान ते। अरुण हो दूंगा ॥2
यह सेचते २ हमारे वर सिंह के बेहिलाय शुस्सा चढ़
आया, बड़ी वबड़ो आंखें छुर्ख है! गई, बदूत कॉपने छगः, घड़ी
घड़ी तझूवार के कब्जे पर हाथ जाने छगा । बहुत थाड़ी देर ढक
इस हालत में खड़े रह कर कुछ लेमख्चते श्हे, वःद इसके तेजो के
साथ उस नाव की तरफ खले ॥
पहिलो दफे बरे हू सिंह जब उस फिश्ती की तरफ गये थे
तब इनके रस्ते में बहुत देर छूमो थी मगर अब की दफे घरदे
ही भर में उस नाच के पास जा पहुंचे ॥
अब की मतवे चत के ऊपर जाने के लिये काठ को खीडढ़ी
नहीं छगी थी, सगर बहादुर नरेप् सिंह ले इसका कुछ खाए
न किया फू स्थान से तलवार चर निकाछ ली और उछेछ
नरन्दसेाहना
कर नाव के ऊपर चढ़ गये, मगर बहां किसी के न पाया, उतत
शैतान में से एक के भी न पाया जिन्हें पहिली मतंबे देखा था.हां
कुछ गठडिया कोर दस पांच कुल्हाड़ियाँ इधर उच्च पड़ी थी ॥ «
इस बक्त बहादुर नरेन्द्रसिह इस गर्म के न बर्दाश्त कश
“सके, उसका सिर घूमने छगा ओर वह नड्गे तहूचार हाथ में
लिये! हुए वद्हबास हे।कर इसी नाव पर धम्म से गिर पड़े ॥
पहिला हिस्सा ।
4काआ८छ जएरहु “5 ८5७
8.
छठयां बयान |
छः छोटी सी काठड़ी में आले पर चिराग जरू रहा हैं
तीन तरफ दीवार हैं और एक तरफ ले।हे के मे।रे मे:
छड़ लगे हुए है जिसमें छोटा सा दरवाज! भी लोहे की सीखें
को बना हुआ इस समय बन्द है ओर उसमें वाहर से ताला भी
बन्द है जिसके पास ही एक आदमी भी बैठा है, शायद पहरे
घाला हो | यह मकान हर तरफ से बन्द है, कहीं से आसमान
दिखाई नहीं देता । आश्षकल शुक्ल पश्ष है मगर चन्द्रमा की रोशनी
भी नहों दिखाई देती, इससे माल्टूम' हा।ता है कि यह जमीन के
अन्दर काई तहखाना हैं जहां दिन और शत का भेद कुछ नहीं
ज्ञाना जाता। उसी में बह्ादुरखिह बैठा हुआ चीरे धीरे कुछ वेएछे
ण्हा है ॥ ध
०हां, कहते थे नाकायक से कि मुझे मत सता, में ब्राह्मण हूँ,
मेरी आह पड़ेगी ते! जल के भस्म है। जायगा मगर खुनता फैन
है ! अपनो बहादुरी फे नशे में वह मानता किसके है ! दौलत के
घमरड में चह किसी के समझता ही क्या है? खूबसूरत खूब-
सूरत पाँच औरतें क्या मिल गई कि दिमाग आस्मान पर चढ़
चया, रहे। बचा दे। औरतें ते। छिन ही गई"वाकी वह तीनों भी
फ्िन जाती हैं ऑर जकुर में गद्दी हुई सेरो दे।छत भी तेरे हाथ
नरेंस्द्रमा हमी
पक डू्
से निकल जाय ते मेरा कछिज्ञा ठाढ़ा है। ! नालायक मैंने तेरा
क्या बिगाड़ा था कि मुझे राह चरने पकड़ छिया और सार भर
से मुफ में अपनी खिदमत करा रहा है, जान नहीं छाड़ता ! हाय
मेरे मां, बाप, तड़के बाले, जे।रू जति क्या कहते होंगे, स॒ुझे कहां
कहां हुँहले होंगे, खेर उसकी ने कुछ पर्वाद बहों मेरा ते! शरीर
ही सकुद में पड़ गया था, दिन में बीम्प बीस मतबे गदहे के
भेड़ पीस पीस के पिलछानी पड़ती थी, चले उससे ते छु ही हुई !
मेरा कया ? वहां सी खाने के मिलला था यहां भी मिक्केगा, भीड़े
के। फे!दू ले जाय खाने के घास देहीया | मेहनत से जान बच्ची
पब इसी काठडी में वेठ इसाड पेलेगे | घाहरे बहादुरसिह लू
भी किस्मत का बड़! ही जवदस्स है ॥०
इस ओऔओठडी के वाहर बेठा हुआ पहने बाला अपनी गदन
नोचे किये हुए बह:हुरासद की यह समधयादट सुत रहा था ।
जब बहाहुरलिह अयनो चात तमाम कर चुका तव उसने इसकी
नरफ सिर उठा कर देखा आर कट्ा-- मालूय दाना है आपका
साम बहावुश्सिह हैं !०
वहाडुर० । (चौंक कर ) हैं | यह आपने कैसे झाना ?
पहरे० | आपकी बाते ही से माव्दूम हैा।ता है ॥
बहादुर० | दसारी कान स्री बातें ?
पहरे५ । अज्ञी पी से तुम कद रहे थे फिर बाहरे बहा-
डरसित सू मो किस्मत का बडा - है॥”?
पद्चिला हिस्सा
डर कण
बहादुर० । हां ठीक है, मेश नाम बहादुरसिह है ॥
पहरे० । आप बड़े छापवाह मात्दूम होते हैं ॥
बहा०] हाँ भाई साहब लछापरवाह ते हैं और फिर आप ही
साकिये पक मेरे ऐसा आदमी अगर छापर्बाह न होगा तो शोर
दुनिया में हैगा के।न ? जात का ब्राह्मण हूँ, कहो रहूँ केाई खाने के।
दे मुझे ले लेने में काई शर्म नहों, कमा कर खाने की फिक्र नही,
ज्षै।रू के पास कुछ रुपये हैं वद्दी अपना सैदा सुलफ बाजार से
छाती है पकाती है खिलातो है, महीने ठक पीने के लिये भड़
भी वही बेचारी छा देती है, में अपना घोंटता पीता हैं । फिर
मुझे फिक्र काहे की ? हां थाड़े दिन इस वाढूायक नरेन्द्र के साथ
शहना पड़ा ते अलबत्ते कुछ फिक्र ने था घेरा था, जब जरा
आराम में बैठे बल कट हुक्म छुआ “भड़ पीसे !” यहां तक
कि दिन रात भजह्ञु पीलते पोसते जी घबड़ा गया, अब डससे
भी वेफिक हूँ यहां ने! काम काज़ कुछ करना ही नह है बेदे
बैंड खाना है, हां भड़ की ठकलीफ न हे।ने पात्रे से। आपकी कृपा
होगी ते। भड़ भी पीने के मिल ही जायगी, आज़ मैं अपने हाथ
की बूटी पिछाऊंगा देखे ते इस के आगे स्वर्ग कुछ मालूम पडता
है! और सब से भरी बात ता यह है कि मुझे कुछ छालच नहीं,
छाछय के माम हो से में कासे सागता हूं नहीं ते नरैन्द्र की
'छाजे रुपये की सम्पत्ति जे। मेरी आंखें के सामने रक््खी हुई
है ले लेता और मजे मे राजा कल के बैठता मगर में ता सोचता है"
जगम्तसेहनी
धन
द्र्छ
वि राजा से हज़ार दर्ज बढ़ कर में खुशी से अपनी जिन्दगी
ऋटता हूं, कान रुपये बटाश कर अपने ऊपर कस्बस्ी ले ॥
पहरें० । सच है सच है (मन में ) यह कुछ पागल भा मसाच्यूध
होता हैं। अगर नरेस्र सिंद का खजाना इसे मास्दूम है ते फूसका
कर पता ले लेता बड़ी वात नहों है ॥
" बहादुर० । क्यों भाई तुम भड़ पीने है। कि नहीं ?
पहरे० । मुझे ते। बिना भड़ पीये किसी दिन चैन हो तहीं
पड़ता ॥
यहादुर० । ( खुश हा कर ) घाह वाह घाह, बड़े खुशी को
बाल तुमने सुनाई, लव ते। हम तुम दे।नां एक हैं, बस भाज से
हमारे तुम्हारे देस््ती हा गई ! माल्यूम होता है तुम भी ब्राह्मण
या क्षत्री है। ॥
पहरे० [रहा में क्षत्री हूं ॥
' बहादुर० | अहा हा / फिए क्या कहना है, आओ जरा गछे
जछे ता मिल लें ॥ क्
पहरे० । ( मन में ) अब क्या है इससे नरेन्द्र सिह की दो।लत
का पता रूगना बहुत सहज है, अगर चह देछत मिल ज्ञाय ते
मैं जन्म मर कमाने से छुट्टी पार और अपने साथिये के अँगूडा
दिखा किनारे है। जाऊँ ॥
बहादुर० । बस सोचते क्या हो आओ द्वेस्त ज़बदी गले
मिले अब की नहीं मानता.॥ ।
पहिला हिस्सी )
जप
पहरे बाला खुश होकर अन्दर गया और बहादुरस्िंह ले
खूब गले गले मिला ॥
बहादुर० । ( मन में ) फाँसा साले के अब क्या है ||
पहरे बाछा०। भाई बहादुरसिंह | अब ता हमारे तुम्हारे दे स्तो
है। हो गई मगर इस देस्ती के छिपाये रहना चाहिये क्योंकि
अगर हमररा सर्दार जान जाथगा कि इन देपे में देसी हेगई
ना झट भुझे यहां से हटा लेगा और किसी दूसरे के यहां पहरे
घर बैठा देगा ॥
वहादुर० । उसकी ऐसी तेसी | कमी म.ल्ूम तेः है। नहों कि
इन दोनों में दोस्ती है, जब वह आधेगा ते घड़ी भर तक तुम्तका
गालियां ही दिया करूंगा, तब कैसे समझेगा ?
पहरे० | हा ठीक है ऐसा ही करना, में भी ऊपर के मन से
तुम पर सा पहरा रक्खंगा | अब उसके आने का वक्त हुआ है.
मैं फिर ताला बन्द करके बाहर जा बैठता हूं ॥ 9 ००२
बहादुर० । जरूर, बहुत जददी। भछा यह ते! बताओ तुम्दारा
नाम क्या है ?
पहरे9 । मेरा नाम सालासिंह है ॥
बहादुर० । चाह भाई भेलासिह | हकीकत में तुम बड़े ही
भेाले है। | छल कपट जरा भी तुम्हारे चित्त में नहों है ॥
» पहरे बाला भाला सिंह बहाडुरसिंह से गले गले मिल के बाहर
निकल आया और फिर उस केठड़ी के' द्वाजे में तारा लगा
है
.भरच्वुमेहनी छश
कर उसी सरह बाहर बैठ गया ओर बहादुरसिह से धीरे धीरे
बातसीत करने छूगा ॥
बहादुर०। क्ये देस्त मेला खिहद | क्या कभी सूर्य या खत्द मा
का दर्शन न कराओरे ? इस अँधेरे में बैठे बैठे ते कई दिन है।
गये ॥
भेकासिद० । दस्त घवडाओं मत, आज हो तुम्दें इस तह -
खाने के बाहर ले चलता हूं ॥
बहाइुर० । बाह बाद ! तब ते। मजा ही है। ॥
भेला+ ! क्ये दस्त क्या अच्छी वात है। अगर नरेन्त सिंद
की गड़ी हुई दाौलत निकाछ कर हम तुम देने अन्मसर खुशी
से शूज्ञारा करें |!
वहादुर० । नहीं नहीं महों, ऐसा न हागा । में लाछच के
अपने पास कभो ने आमे दुंगा । हाँ ठुमके जरूरत हैः तेः चकेा
बसा दूं निकाछ के।, में एक पैसा न छूंगा ॥
भेल्य० । भच्छा हमी के घना दे। ॥
वहादुर० | आज़ ही चले।, यह कान सी बड़ी बात है |
सालछा+ । अच्छा आज मैका पाकर हम तुम निकले घेरे ॥
बहादुर० । तुम्हारा अफसर ते अभी तक से आया ॥
भेछा9। हाँ आज़ देर हागई अब उसके आने की मो उम्मीद
नहीं है ॥ |
बहादुर० । से| चले फिर बाहर दी को हवा खाये ॥
पहिला हिस्सा !
घट जाणलुल्ूलून
मेा०। घड़ी सर और ठहरा! तब सके अगर न आया ते फिर
आज न आवेगा, हां यह ते। कही नरेन्द्र की दै।लनत कहां पर है ?
वहादुर० । जहाँ उसका मकान है उसके केस या देश कार
पूरथ हट के | मुश्किल ते यह है कि में कमजार आदमी न मालूम
के दिन में वहाँ पहुंचंगा ॥
माला० । नहीं नहीं, में जाकर अभी दे घोड़े ले आतः हूं ।
हमारे सर्दार के यहां जितने घोड़े हैं सभी तेज चलने वाले हैं,
सभी में से खुनके दे। श्रोड़े ले आता हूं अगर कोई हमले;गें का
पीछा करेगा ते न पकड़ सकेसा। | तुम घोड़े पर बैठ सकते है।
कि नहीं?
वहादुर० । हां हां, भरता घोड़े पर चढ़ना मुझे न आवेगा
थाड़ो देर के बाद भेलासिशह उस तहखाने के बाहर हुआ
और आधी रात जाने के पहिले ही फसे कसाये दे! उस्दे घोड़े ले
आया और देने के! एफ दण्ज़ के साथ बाँध तहखाने में सय।।
चहाडुरसिंद के कैद से निकाल कर बाहर दे आया आओ देने
आदमी घोड़े वर सवार है| पश्चिम की तरफ स्वाना हुए ॥
दे! दिव तक देने! जगह जगह पर टिकते जोर दम छेते
बराबर चले गये, तीसरे दिन ये दे।ने एक छोटी सी सदी के
कियारे पहुंचे जिसके देने! तरफ घना जड़ुछ और किलारे पर
बड़े बड़े साखू के दरह थे | यहाँ पर बहादुर सिंह ने अपना घोड़ा
शैकां ओर भेलासिह से कहा +-- ५५
दे
कक
घ
नरन्ड्रमा हनी
हल किक हे
“बस अब हम छेगें के इससे आगे न बढ़ना आहिये।
नरेन्द्र की जमा पूंजी इसी जगह से हाथ लगेगी ॥/
भेल्वा० ! कहां पर है?
बहादुर० । पहिले यह ते बताओ कि जमीन केसे खेदेरे ?
केाई फरला था कुदाली है ?
ज्ञाछा० । फरसा या कुदाली तो साथ छाये नहीं ॥
बहादुर० । फिर आये क्या करने ? यहाँ ते आठ ने पुरखा
अमीन खादनी पड़ेगी ॥
भला० । वहां कहते ते। हम यह भी साथ ले छिये होते ॥
बहादुर० । कया मैंने यह नहों कहा था कि जमीन खाद के
दै।छत मिकारूनो पड़ेगी ?
मऔेछा ० । हां कहा ते। था, स्थैर अब क्या फिया हाय *
अहाहुर७ | किया बया जाय वस इस जगह ( हाथ से बता
ऋर') खाद! ॥
सैला० । यहां से शहर भी ते! घास ही माल्दूम होता है,
कही ते! जाकर कुदाली ले आएं ?
बहादुर० । अच्छा जाओ ले आओं। मगर खुने! ते, क्या
मुझे अकेले छोड जाओगे ?
मेल्ला० । जैसा कहे ॥
८०५ ध्रक |! बंहाह/लिंद इस दुष्ट सालासि|ह का घासा देकर
यहां पक ते छे आये। अब ग्रे देनिं अपनी अपनी चालाकी में
के पहिला हिंस््ला ॥
हर २
लगे हैं । भेला सिह सेचता हैं कहीं ऐसा न है। कि बदादुर,सह
बपला देकर चलता बने, पछे हम किसी छायक न रहेंगे, हमारी
मबशडली चाले भी बेईसान समझा कर फिर अपने साथ न मिला-
चेंगे | मगर लालच ने उसे पूरे तै।र से फँसा लिया था और
चह कुछ बेवकूफ मो था ॥ के
बहादुरसिह सेचते थे कि इस नारछायक के यहां ठक ते
के आये और हम हर तरह से साग के जा भ खकते हैं, मगर
असल काम ते उन देने औरतें! का इन हरामजादे की कैद
से छुड़ाना है, अगर यह दै।ट कर फिर बहां चला जायगा जहाँ
से झाया है ते भुश्किल होगी, अपने साथियें से कह सुनकर
उन औरतें का किसी दूसरी जगह हटवा देगा तो बड़ा तरद्-
हुद होगा, जिस तरह हे! इसे गिरक्वार ही करना चआहिये ॥
असछ में बहादुर सिंह इसे अपने कब्जे में के आये क्ये'कि
इस चक्त जहां दाने खड़े हैं यह चद जगह है जहां नरेन््ट्र के छोटे
भाई घोड़े पर सवार होकर रोज आया करते हैं और यहां से
नरेन्द्रसिह का मकान भी बहुत करीब हैं ॥
बहादुरखिद और मेलासिंद खड़े बातचीत कर दही रहे थे
कि सामने से एक सलवघार हाथ में नेजा लिये आता छुआ दिखाई
पड़ा जे। बहादुर्रसह के देख तेजी के साथ रूपक कर इनके
पाख आया और बोला, “बहादुर | तू कहरे चला गया था, यहां
क्या करवा हैं? कुछ भाई नरेन्द्र का भी पता छगा $»*
अनेब्त मे!हनी
हि 05 कक हद
यही नरेन्द्र सिह के छोटे भाई जगजीतसिह हैं | उम्र इनकी
झा जद्ठारह घर्ष की है, खूबसूरत और नाजुक हेने पर सी यह
अपने शरीर के बहुत मजबूत बनाये रहते हैं, घोड़े पर चढ़ने, हर्चा
चलाने और शिकार खेलने का शक लड़कपय ही से है. इसके
सिवाय हर तरह की चिद्या में अपने के निपुण चनाये रहने का
ज्यादे ध्यान रहता है। यह शौकीन भी बहुत थे मगर जब से
नरेम्द सिंह चले गये हैं तब से इनके अपने शरीर का ध्यान ही
जाता रहा, अच्छे अच्छे कपड़े पहिरते, शिकार लेऊने, घूमने
फ़िरने बहिक दुनिया से भी ये उदास हागये, दिन रात यही से य
है कि भाई नरेन्द्र मुझे क्ये। छोड़ गये ! कैकि इनकी और
नरेन्द्र की मुहृब्दद के जे कोई देखता वह यही कहता कि इससे
बढ़ के साइये का प्रेम दुनिया में न दीशा । इस समय यह श्ोड़े
मर सचथार देकर हवा खाने या शिकार खेलने नहों आये है !
यह से पासडी एक बनदेवी का खान है, उत्तके नित्य दर्सन करने
का इन्हेंने प्रण बांधा हुआ है, कुछ दिन रहे घोड़े पर सलवार है।
अपने घर से दे। कोस चलूकर शेञ्ञ बनदेवी का हर्शव करने आते
हैं । क्षय तक घर रहेंगे नेम ते उठेगा, चाहे पानो बरसे, पत्थर
प्रढे, आफत जाबे भगर यह बिना दर्शन किये न रहेंगे । यही
कि उनसे मुंछाकात होने की उम्मीद में बहादुर सह
बनके रास्ते पुर आ जमा है॥
बद़ादुरश्फद ने फाप्प, “हा हा पता आसते हैं. ( मेग्डापलिंद
मर पंहिला हिसुपत $
की तरफ हाथ से इशार, करके ) पहिले इस दुए का पकड़े
जिसकी बरदालत नरेन्द्रसिंह सड्डूद में पड़े हैं ॥०
'डुरसिह की वात सुनते ही वह नया बहादुर भाला सिंह
की ओर झुका ॥
अब भे।छ/सिंह के मातम है। गया! कि वहादुरसिंह डंसके,
साथ चालाकी खेल गये और धोखा दे कर यहां तक ले भाये
अब फंछाया चाहते हैं ॥
उनके अपनी तरफ छपकते देख भेलरसिह ने भट स्थान
से तलवार खेंच ली और इस जार से उनके ऊपर चलाई कि
अगर बह सारझाकी से पैतर। बदल कर न हट जाते तो साफ दे
डुकड़े नज़र आते । उन्देंने भी अपने नेजे के! घुमा कर बड़ी
खूबसूरती के साथ एक वार भेलछालखिह को टॉस पर "किया
जिसके छगने से वह खड़। न रह सका ओर फेारन जमे न पर -
गर पडा | जमीन पर गिरते ही उसे कैद कर लिया शोर कमरेवन्द
खेाछ उसके हाथ पैर कस एक पेड़ के साथ बांध दिया । इसके
बाद वहादुरसिह से वाछे, 'हां अब कहे क्य' हाल है, हमारे
नरेन्द्र भेया कहां हैं और तुय उनले कैसे मिलते ?”
वहाहरसिद ने कहा, 'नरेन्द सिह के चले जाने वाद उद्दास्त
है। कर विन। कहे सरकार के में भी उनकी खोज में निकला, कई
दिन तक खेजता फिरता एक नदी के किनारे पहुंचा, दुर से
पक छोटी स्रो किश्ती आतो दिखाई पड़ी, डर के मारे मैं' एक
जरेब्दमाहइनी
४ कुक 77 न्क
अनमे पेड़ पर चढ़े गया जे! उसी नदी के किसारे पर था, जब बह
फिएती पास भाई तब मालूप हुआ कि हमारे बांके नरैन््द्रसिह
है। खूबसूरत और जवान औरतें के जे सिर से पैर तक जडाऊ
जैवरों से लूदी इई थों साथ बैठाये हँसते बोलते चले थाने हैं ।
देखते ही मैरी तवियत खुश हो गई, मेंने पुकारा, जब बह किनारे
पर आये मुलाकात हुई, में खुशों खुशी उनके साथ है। लिया |
स्ेरा है।ने पर किशती किनारे लगाई गई, में मडुः पीसने
' छथा, बन देने औरतों के मेरे सुपु्व कर नरेन्द्र सिंद दूसरी
भाव फिशाया करने चले गये जे वहुन बड़ी ओर बहा से दिखाई
कैसी थी ॥
नरेन्द्रसिंद के आने से बहुत देर हुई, इधर कई डाकुओं ने
आकर हमलेगे के शिरकार कर लिया और हमकेागे को शांखेर
मेँ पह्दी दांघ अपने घर ले गये | यह नेः मस्युप नहीं दि उन
पीले झोरतेए के कह कैद किया ऋौर उनपर क्या बीती, हा सुझे
पक तहखाने में कैद कर विया आर पहरे पर इस सालायब् के।
बैठा दिया, यह नरेस्द्र सिह की दे।लन छेने मेरे स्गथ आयात है.
पूछे। हरामज्ञादें से कि इससे सुकसे ऋष की मुहृष्दत थी जे।
बेचारी भरेन्टासह की देलस में इसे दे देता ॥
इसके बाद भेलाय सिंह के! धोख। देने का हाल वहा दर सिह में
झुनाथा जिसे रून ०ह बहुत हो हैसे। साला सिह पेड़ के साथ बंध
हुआ खुन सुन कर खिड़ता,और जी ही जो में गालियुए दैसा था |
ब
५४४ फ्डिला हिस्ला !
४ : + आय
जगजीतसिंद ने भेलासिह से पूछा कि तुम कैन है, तुम्हारे
सड़ी साथी कहां रहते हैं, उन देने औरतें के कहां कैद कर
रक्खा हैं? मगर सिवाय चुप रहने के मेला सिंह एक बात भो न
बेला, एकदम यूंगा वन् बैठा, पूछते पूछले थक्त गये मगर अपनी
बात का कुछ भी जवाब न पाया वहिक गुस्से में झाकर भेछ-
सिंह के कई छात भी लगाये मगर उसका भी कोई नतीजा न
निकला, आखिर झाचार हेकर बहादुर से बेले :---
“तुम इसी जगह ठहरे में इस नारायक के ले जा कर कैद-*
खाने में डाल आता हूं ओर खाने पीने के सामान के साथ अपने
दे! चार साबिये! के भो साथ लिये आता हूं तव नरेन्द्र साई
का षता ऊूगाने अपर उन दोनें औरतों के डाकुओं की कैद से
छुड़ाने के लिये अलंगा ॥?
बहादुरसिदद ने कहा, 'वहुत अच्छा ॥” ह
शाम होते होते अपने दे! तीन साथिये। के साथ कुछे खाने
पीने का सामान लिये अ.र॒ सफर की तैयारों किये हुए जग
जीवसिद फिर आ पहुँचे । बहादुर सह भी भूख से दुखी है। रह।
था उसे भेजन कराया, इसके बाद उससे कहा, “तुम छय घर
जाओ हमलेग नरंस्ठ सिह की खोज सें जाते है क्योंकि सुस न
ते हमलेगे के साथ चर सकते है। अर न हहने भिडने में
साथ दे सकते है। ॥” *
बहादुरसिद्द ने कहा- ' ध्स्पमें कई शक नहीं कि में आपके
जा
। नरन््वामेइनी छ्के
थरावर नहीं चल सकता ओर छड़ाई से ते। में सै! कास भौगता
हूँ मगर सरेस्त सिंह का खाकर घर पर न बैठा जायगा, तुमलास
अपना काम करो में भो चुपचाप इधर उधर घूम कर उन्हें
खेजुंगा ॥०
उन्हेंने जवाब दिया, “खेर जे। मुनासिव माव्दूम है। करे!
सुधि टीक दीक पता दे कि उन्हें तुमने कहां छोड़ा और तुप्त
खुद कहाँ कैद रहे (/
चहादुर सिह पूरा पूरा पता बता कर वहां से दूसरों तरफ
रैबाना हुआ ॥
ह
पहिला हित्मता !
क््मुछहछु
सातवां बयान |
थी रात का वक्त है, चांदनी खूब खिंली हुई है, इस
खूबसूरत और ऊंचे मकान के पिछवाड़े वाली दीचाद
पर चाँदनो पड़ने से साफ मालूम हाता है कि इसमें तीन बड़ी
बड़ी दरीसचियां हैं और बीच बाली द्रीची ( खिड़की ) में दे।
औरतें बैठी भापुस में बातें कर रही हैं । नीचे की तरफ एक
पाइबाग है जिसमें के खुशबूदार फ़ूछे। की महक ठरढी ठरुद्ी
हवा के साथ मिल कर उस दरीचो में जा रही है और ने भोरतें
बालें करती हुई घड़ी घड़ी उस याग की तरफ देखती ओर ऊंची
सांस छेती हैं ॥
इन देने में से एक की उद्र देश्ह या चीदह वर्ष के छगमग
है।गी, चांद सा गेरा सुख देखने से यही मात्दूय है।ता था कि
डस मामूछो चाँद के अछावे यह दूसरा चाँद इस मकान की
दरीची से निकला खाहँता है दवाजे के साथ ढासवा छगाये
अपना दाहिना हाथ दरीची के बाहर निकाले है जिसमें अनमे।ल
हीरे की जड़ाऊ घूड़ियां ओर अँगूटियां पड़ो हुई हैं, बात बात में
उंची सांस छेती और आँसू टपका दफ्का ऋर अपने ठीक सामने
की तरफ बैठी हुई दूखरी औरत से बातें कर रही हैं मे। खूबसूरती
और गहने कपडे के ढेहाज से इसकी प्यारो सखो मालूम देती है ४
हि व्कू
० ५
कुछ देर तक देने बेटी रहीं, बाद चन्द्रपुस्ली ने अपनी सखी
की तरफ मुंह करके कहा :---
ञ सखी तारा ; अब में क्या करूं ??
तारा०। प्यारी रम्सा ! तुम ते नाइक जिद करती है। अगर
अपने पिता का कहना मान ले। ते। कोई हर्ज नहीं ॥
५ रेम्भा० । नहीं बहिन ऐसा न हेसा, धर्म तो बिगड़े दी गाः
सगर इसमे धदलायी भी बड़ी होगी, दुनिया क्या । कहेगी कि
शस्भा की शादी नरेन्द्र सिह से लगी, तिलक चढ़ चुका था, बारात
निकल सुक्ो थी सगर नरेन्द्र सिंह ने ब्याह नम किया, बाशत मैं
शत भाग गये तब रसश्या की दूसरी शादी की गई | क्या दे। शादी
चाकी न कहलाऊंगी ?
तारा० । सुनते हैं नरेन्द्र सिंह तुम्हारे छायक भी न था बडा
ही बदसू रत और एक दाँग से छँगड़ा था फिर क्यें डसके छिये
जिद मासती है। ?
रम्भा० । सखी जे है।, रेगड़ा, छूछा, घन्वा, कड़ी चाहे
जैसा है।, आखिर हमारा पति है। छुका अब में दूलरी जगद शादी
नहीं करने की । पणिइत छोर छाख कसम खाये कि इसमें केःई
दे नहीं मगर हें एक से खुलूंगो । ज्यारे जिद करने ते। बाप,
मं, भाई इत्यादि सभे के छोड कहों खेली जाऊंगी वा अपनी
जान वे दूंगी ॥ |,
* तान्ा० । सखो बात ते यही है, जिसके हुए उसके हुए, मगर
छः का
दर
लड् एाइला हिस्सा रे
पापा
अफलसेस है कि नरेन््द्रासह कहते हैं कि में ज़न्मसर शादी हो न
करूंगा चाहे जे। है। ॥
रम्भा० | अगर उसकी ऐसी ही मर्जी है तेत क्या हज है में
भी उनके नाम पर जेमिन बन जन्य यदाऊंगी मगर मुझे सिश्चय
है कि अगर मेश सामना नरेन््द्रसिह् से है। जावेगा भर मैं हाथ
बांध अपने के उनके पैरों पर डाल दूंगो ते। वह मुझकेा कभी
न त्यागेंगे, मगर क्या करूं ? कहां ढुढ़ू ? में ते उन्हें पहिचानसी
भी नहों !!
तार।० | वहिन अब मुझे निम्वय है गया कि तुम अपनी जिद
न छेोड़िगी, अपने घर्म के! न विगाड़े.गी, खेर जे है। में भी बाप
मां के छे।ड़ तुम्हारे दुःख छुख की साथी दनूंगी, अब यहां रहना
ठीक नहों है ॥
शम्भा० | (शोकर) प्यारी सखी ! तुम मेरे साथ क््यें अपनी
जिन्दगी विगाइती है। ? 2१ 5 लक
तारा० । ( रेकर और हाथ जैड़ कर ) बहिन ! क्या तुस
समझभती है। कि तुमसे अछूग होकर में झुखी रहेंगी ?
सम्भा७ । नहीं...... ... ...में ते।..! .....जैर लुम्हारो शैसी
मर्जी ॥
तार।० | मैं कभी तेरा साथ नहों छिीड सकतो ॥
श्स्सा७ | में तो आज ही इस शहर के छोड़ा चाहती हूं ॥
वारा० । अच्छा है चले में भी तैयार बैठी हूं ॥ * *
है|
हि]
2 ०
*... इम्भा० | भला यह ते बताओ मुझे किस भेस में यहां से
! सिकलना चाहिये ?
।.. तारा० । इन जैचरों कषीर कपड़िं के उतार देवा सा हिये जे।
, हमले पहिरे हुए है ओर मेली घोती ओर एक एक चादर छे
_ यहाँ से चल देना चाहिये ॥
: “शक्सा7 । मैरी समम में एक एक वैशाक मर्दोनी भी स्शथ
५ शेश्व केला मुनासिय होगा ह
* सारा० | जरूर ऐसा करना चाहिये । कुछ दूर जाकर हक:
काम मर्दाने जेस में सफर ऋरेंये |
रम्सा9 ) तो अब देर करना मुनासिव नहीं है चले! ॥
जारा० । मेरी समझ में आज चलना टीक नहीं है &
रफ्झा० । क्यों ? ।
तारा० । ईश्वर की कृपा से अगर नरेन्द्र सिह कहीं मिले सी
से हमम्ल्ग उसके केसे पहिचानेंगे ? अगर न पहिचान साकेः
आर बह मिल कर भो फिर जुदा हा गये ते बिलकुछ मेहनत
अर्बाद जायगी ओर दौड़ घप ही में जिन्दगी बीतैगी ॥
शभार । फिर क्या करना चाहिये ?
हारा० । तुम्हारी मां के पास नरेन््द्रसिह्र की तस्वीर है
किसी तरह उसे ले लेना चाहिये ॥
सस्मा> । मुझे नहीं मालूम बह तस्वीर कब आई और कहां
प्न
हा 3
है नरक से अपार बीज पशपडी+ अकवाा 4 पर ककय०.. जलने शकिबड+ + अनकामड मे पिलुफ्राका: परि3.. शत "दिशा
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हा
गा
हा पहिला दिस्सा!
तारा० । तुम्हारी शादी पक्को हाने के पहिले ही यह तस्वीर
सुम्हारे पिता छाये थे जे अभी ठक मां के पास है ॥
रम्सा० | उसे किसी तरह लेना चाहिये ॥
तारा७ | कछ जिस तरह बनेगा उस तस्वीर के में अरूर
गायव करूँगी । एक काम जोर भी करना चाहिये॥ | *
रप्भा० । चह् क्या ?
तारा० एक नामी खानदान की रूड़की का इस तरह यका-
यक अपने घर से बाहर मिकरकमा टीक बहों है इसमें ८डी बढ -
नामो होगी, चाहे तुम कितनी ही नेक और पलिक्षता क्यों न
बने। मगर कोई भी तुम्हारी नेकललनो का न मानेगा, यहाँ ८दक
कि नरेन्द्र लिंह के भी ताना मारने को जगह मिल जाथगी,इससे
जरूर किसी मर्द का साथ लें लेना था हिये ॥
रग्भा० । ऐेसा कान है जे मेरे पिता से वरखिलाए हाकर
ऐसे वक्त में हमकागों का साथ देगा अर जिसके साथ वाहुर
जाने में बदनामी भी न हैगी ?
तारा । सुम्हारा चचेरा साई अज्ञुनसिंह अगर साथ चले
ते अच्छी बात है,उसके सड्ढः जाने में किसी तरह की बदतामी
नहीों हे। सकती, सित्राय इससे वह दिल्लेर और बहादुर भी है,
दस बीस दुश्मनेर का शुकाबिला करन! उसके लिये जदूनी बात
है ओर बह साथ चलने पर राजी भी हैा। जाया क्योंकि तुम्हें
बहुत मानतु। है ओर तुम्हारी वस ठुसरी शादी की बातचीत से
तक
नरम्दमैाहनी हे
“““कूकूनू। दर
उसे भी रज है, घह नहीं चाहता कि तुफ्हें किसी तरह से दुःख
है। ॥
रम्भा० बात ते बहुत ठीक कहो, मुझे आशा है कि अजुन-
सिंह अवश्य मेरा साथ देगा, अच्छा कल सबेरे ज़ब चह मासूछी
समय पर मुझसे मिलने आवेगा तब में उससे बातें करूंगी, चह
नरेन््द्रसिंह के पहिचानता भो है मगर तुम वह सस्वीर लेने से म॑
चकना जिस तरह बने कल दिन भर में इसका बन्दे। बस्त जरूर
करना ॥
ताश० | ऐसा ही होगा ॥
इसके बाद वे दे।ें! उसी ऋमरे में अपनी अपनी चारपाई
धर से रहीं, तारा का ता नींद झा गई सागर रम्भा की आंख
विश्कुल न छगी, रात भर घड़ियाल को आवाज गिना की' और
अपने जूते की तैयारी और घात साचती रही । सबेरा हेते ही
चास्पाई से उठी, तारा के भी जगाया हाथ मुंह घींकर बैठी और
अपने भाई अजुनसिह के भाते की राह देखने छूी ॥
थेड़ी ही देश बाद अजुनर्सिह सी पहुंचे, धम्भा के रोज से
ज्यादें उदास देख बेलि--'बहिन | आज सु ज्यादा उदास
आह्ूम होती है। | इसका सबब ते में जानता ही हूं कक््यें पूर्छ॑
से भी कहता है कि समर करे! घबड़ाओ मत देखे ईपएचर क्या
करता है |?
स्कमा० । क्या करू मैथा अब ते में अपनो जान देते के
चि
कर 04%50035:28. |
तैयार है| खुकी, पिता मानते ही नहीं, भां कुछ खुनती ही नहीं,
तुम कुछ भदद करते ही नहीं फिर जी ही के क्या...( आंख
चहाती है) ॥
अर्जुन ० । ( अपने रूमाल से आंख पोंछ कर ) बहिन | मैं भी
ले कई दफे मना कर चुका हैँ मगर छेसी परिडतें के फेर में
पड़ के काई सुनता ही नहीं ते क्या करूं ? अब जे तुम कही में
करने को तैयार हूँ अपने जीते जो किसी तरह की तकलीफ
तुमकीा न हेने दूंगा ॥
रस्भा० । क्या मेरा कहना तुम मानोरे ?
अर्जुन० । जरूर मानूंगा ॥
रम्भा० | अच्छा मुझे इन सभा से चुपचाप काशी -पहुँचा
दै। में बहा विश्वनाथ के चरणों में अपना पासिन्नत निबाहूँगी और
बेखंशी कि भाई अ्नपूर्णा मेरी कुछ खुनती हैं या नहीं ॥
अजुन9 । क्या हर्ज है चछा तुमके आजही यहां से छे चेछवा
हू कहे! ले। और किसी के! सी साथ खेता चलूँ ॥
र्भा० | सारा मेरे दःख सुख की साथी हेतहर चलेगी और
किसी के साथ केना मुनासिव न होगा ॥
अर्जुन० । (तारा की तरफ देख कर ) क्यें क्या तुम चलेगी
सारा० | अरूर चलूंगी ॥
'. अजुंन० | अच्छा ते! खबारी का क्या बद्ाबस्त किया जाय ?
रम्भा०। तुम जानते ही है। कि दमछिगें केः घोड़े परन््चढ़ने'
0.
और
52040
यू ः वह
का खूब माहावरः है, फिर भागने के लिये इससे बढ़ कर और
कान. सवारो हेगगी ?
अजुन० | अच्छा ते घोड़े ही का वन्दीवस्त हैं। लायगा अब
में जाता हूँ, क्योंकि इसी वक्त से फिक्र करनो हे।गी ॥
तारा० | ठुम्दारे पास नरेत्द सिंह की तरुवीर भी ते हागी ॥
अजुन+> । हां है ते! ॥
तारा+ | मुझे दे। ॥
अजुन० । अच्छा मेरे साथ आशो मैं तुम्हें दूं ॥
तारा> । ( भीहें मड़े।ड, कर ) थाह ! में सुम्दारे खाथ बहा
अब) में सरल |!
अजुन्त० । ( हँस कर ) अच्छा में अपने साथ लेता चलूँगा
ररूते में ले केमा ॥
,. तारा । से है। सकता है ॥
>आजुचर । भच्छाते मैं जाता है अब भाघी र/त का मुलाकात
हैगी ॥ ४
अजुनर्सिह वहां से रवाना हुए और अपने घर ज्ञाकर छिपे
छिये सफर की नैयारी करने छगे ॥
क्
पहिला हिस्सा!
ब् णाक्क्क
आठवां बयान ।
द्ञ [म होते ही रम्भा और तारा भो अपनी अपनी तैयारी
इस तरह करने लगीं कि किसी लेडी तक के मत्युस
ने हुआ, इसके बाद कुछ खा पीकर से!ने के कमरे में जा अपने
अपने पलछकू पर से! रहीं। नींद काहे के आतो थी, यही सेच
रही थीं कि अर्जुन सिंह आचें और हमले।ग यहां से चकते बने हे
आधी रात के बाद यकाय के बाहर से किसी के पैर की साप
मात्यूम हुई, दे।नें। ड्सी तरफ देखने छगों, इतने में अज्वखिह
खामने आ खड़े हुए । इनके देखते ही देपने। उठ बैठों आर रम्सा।
ने पूछा, “क्या आप तैय.र हे आये १० इसके जवाब में अजुन-
सिंह ने कहा, “हां सब दुरुस्त है अब देर मत करे ३०
रमस्सा० | यहाँ आती समय पहरे वाले ने लेप अरूर टोका
होगा और जाती समय भी दोकेंगे ॥
अजुन० | क्या पहरे चाछे। की इतनो मजार है। गई कि सुद्ी
आते जाते शेक झेक करें ? हाँ जाने के दाद जिसकर जी चाहे
शिकायत करे | अच्छा ऊद देश ले करे जदडी चल्े। ॥
रफ़्याओऔर तारा देनेए के अजब सिह साथ केकर घर से बाहर
निकले और पैदल मैदान की तश्फ चले #थेड़ी दूर जाकर इन
छेगें के पूक पुराना बढ का पेड मिल" जिसके नीचे तीम साईस
छः
ऑश्ब्लमि।डली
“फक्पा अे
ऋकसे कसाये घोड़े लिये अज़न सह के आाने को राद देख रहे थे ॥
लीक आदमी घोड़े पर सवार हुए। अजन सिंह ने तीर्सी सताई-
मे के! कहा, भव तुमछिय अप» अपने घर जानो जब हम भावेरो
रच बल छेंगे घर बेटे तमझेयगें के खान के पहला करेगा
नीएा साईस सलास कर विदा हुए भार इन केगे। ने पश्चिम
का रास्ता पकड़: ॥
ज्ञय संक गाए रही तीनों भीड़ फं गये । जब आन्यातन
पर सूपेदों दिखाई दें। लगी तब अजन सिह न थोड़े की बाग रेप्की
अर सम्म की स्स्फ देख कर कह!, विन ! अब हम लगे के
यहां कुछ देर के लिये रक जान। आधहिये, भनन््दाज से सालूम
हाला है कि भुस/ फिर के दिकते का स्थान अर्थात् चढ़ी ( पड़ाव )
अब बहुत करोय है मगर हमलिश आगे जाकर किसी इसरी चटह्टे
में इपा डालेंगे यहां न ठहर मे, इस लिये इस जगह रककर घोड़े
के! ठएडा कर लेना आहिये। तुम देना अशता के बदन के छबक
मर्दानी शैशाक भी में झेत, आधा हूं ले तमणेगों के घोड़े! की
गन के साथ असवात में पीछे को तरफ बची हुई है, सना सित्र
है कि तुम देने। भी अपनी मर्दानी सूरत बना ले। ॥४
अर्जुनसिंह की बात रम्सा और तार ने भी पसन्द की और
घोड़े से उतर पड़ीं। जीन खाल घोड़े के दणढा होने के लिये
काला और खुद भी जनानी पोशाक उतार मदाने कपड़े पद्धिर
कप लैंयार हे पाये... '
श्र
न् पश्िलप हिस्सा |
४५ 55
तने आदमी चारजामा विछा कर पेड़ के नीचे बैठ गये ।
कुछ देश के बाद् रम्भा का इशार; पः तारा ने अजनलिंह से कहा,
“आपने वाद किया था क नरेन््द्र:लंह की तस्वीर दिखादेंगे २
अज़न सह ने कहा, “हां हुई, में नरे तर लिंद की तस्त्रीर लेता
आया हू की! देखे। ।” यह कह अपने जेब से तस्घीर निकाल तादा
के हाथ में दे दी अंश ओर अप घोड़े के। कसने छगें ॥
नारा मे रज्मा के हथ में स्वयीर देकर कहा, “ देखे। बहघिद
ज्से खूबमूरत भर दिलावर नरेन्द्र सके ब.रे में छे,गे। ने केखी
कैसी गणप जड्ाई हैं ॥”?
तस्वीर देखते ही रम्भा को भांखें डबड॒वा ब्यर और जी
प्ैशेत है। गया, अपने के बड़ी लुश्किल से सम्हाल। अर तस्वीर
नारा के हाथ में देकर वाली, ' देखा चाहिये इनकी वर्दाछत मेरी
कया गति हे।ती है !!» ु
अजुनसिंह दे। घोड़े! पर जीन कस चुके, हब अपने सवारी
करा धीड़ा कसने ऊगे ले यक्रायक कुछ देख कर घोड़ा भड़का
भौर अर्जुनसिंह के हाथ से छूट मेदान की तरफ भागा, वे भी
उसके पीछे दाड़े ॥
रम्मा और तारा यह देख उछ खड़ी हुई और उस तरफ
देखने रूगों जिधर भोड़े के पीछे पीछे अज्॒नसिंद देड़ गये थे ।
घोड़ा चक्कर छूगा रूगा कर दे।छता और बसी खड़ा है।कर पीछे
की तरफ ट्रेखता जब अजुगसिंद उसके पास पहुँचने से फिल्
शा
भर्ेम्द्रमेहरी
फ्न्त्रा डरे
सेजी के साथ भागता था ॥
दिन वहुत चढ़ आया मगर बह घोड़ः अज्ञनसिंह के हाथ
ने छगा यहां तक कि देखते देखते थे दे।ने। की नजरे से ग।यव
है। गये, आखिर घबड़ा कर रम्मा भौर तारा देने घोड़े! पर
खबार हुईं और उस तरफ के चलों जिघर घोड़े के पीछे अजु न-
सिंह गये थे मगर इनका मतलव सिद्ध न हुआ, दिन भर भूस्ते
प्यासे देड़ने पर सी अर््जुनसिंह से मुछाकात न हुई ओर देशें
बुक बड़े भयानक मैदान में पहाड़ी के नीचे पहुंच कर रुक गई ॥
छत्वार देने औरतें घोड़े से नोचे उतरों अर घोड़े! को
प्रोट खाली कर छभ्बी बागडोर छूगा पत्थर से अटका खरने के
खिये छेडड़ दिया शोर खुद एक चिकने पत्थर पर बेठ सेने और
अफसेसस करने छूमों ॥
रुम्भा० । देखे वहिन ! बुर्सी किस्मत इसे कहते हैं ॥
वारा० । परमेश्वर की मसजी न मात्तूम कैसी है, इस वक्त
हमलेग कैसी चिबस है। रहो हैं ॥
रम्भा० । अजुन खिंद के हाथ अगर घोड़ा छग भी गया है।गा
से वह उस ठिकाने जाकर हमलेगे का न देख कितना धबड़ाये
होंगे ॥ हे
साशा+५ । अब हमलेगे। का चह तक पहुँचता मुश्किक है ॥|
रसा5 । पादुम हो नहों कि घूमते फिरसे कह आग गये !
अब भू के मारे जी थेखेन दे रहा है |
पहिंला हिस्सा ।
रद - नुन्लला
तारा० । झुझे विश्वास है कि जीन की खुर्जों में थे।डा बहुत
मैचा अजुनसिंह ने ज़रूर रखधा दिया होगा ॥
रम्भा० | देखे ते कुछ है ॥
ताय ने उठकर दोनो घोड़े के जीन की तलाशी ली, लग-
भग दे सेर मेघा देने में पाया जिससे वह बहुत खुश हुई और
पुकार कर रम्भा से कहा :-- हु
“पूम दोनों दुखियों के खाने छायक बदिक चार पाँच दिन
लक जान बचाने छायक भेत्रा इसमें है ॥*
सभा» कहीं पानी मिले ते। पहिले मुह हाथ थे! लेवा चाहिये॥
तःरा० । इस पहाड़ की सब्जी की तरफ देख कर में समझती
हूँ कि इसके ऊपर पानी का चश्मा जरूर होगा ॥
रम्भ/० । अभी ते दिन भी बहुत है चले पहाड़ी के ऊपर
चहु त ॥
रम। और तारा देने ने सेचा साथ लिया और पहदेए्डी के
ऊपर खढ़ने छगी । थोड़ी दुर ऊपर जाकर पानी के कई सेते
इनके मिलते, एक झरने के पास बैठकर इस छेशों ने मुंह थोया
और फिफायत के साथ थेड़ा मेवा खा कर ज्ञी ठएडप किया
और फिर पहाड़ के ऊपर चढ़ने छगीं यहां तक कि शाम हेते
होते साटी पर जे पहुंचीं ॥
पहाड़ के ऊपर कई खूबसूरत अर घने जड्ली पेड़ थे जे।
इस समय हवा के मरस्टें से दिल दिल कर झेंके खड रहे थे
4
ञ्ा
सरेफमेइनी
४: द्फे
दुक तरफ छोटा सा दालान भी बना हुआ था, शाम है! चुकी
थी ये दाने थकी हुई एक पत्थर पर बैठ चारे तरफ देखने रूमों ॥|
दक्खिन की तरफ एक खूबसू रत इमारत मं. र उसके पास
हो दा हिली तरफ हटकर कस भर को दूरी पर छोटा सा शहर
भी किखाई पड़ा ॥
रप्मसा ने कहा, *बहिलस तारा | हमलेग इल शहर में खत्त
के नरेन्द्र सह के! अरूर ढूढ़ेंगे, देखे: लेगी भे उनके बारे में क्या
कया गप्पें उड़ाई थों कि रहुड़े, छूले, कामे अर बड़े हो घद
खरत हैं । अगर कैसे ही होते ते। दया था ? मेरा सस्पन्ध तेत
जबसे दै। हो खका था, मेरे पल कहता ही चुके थे अस्तु मेरे
छिये परमेश्वर बंधे हे जाएँ जले हे। ॥
ताश:० । उन लेगी की जुवान में साँप डसे जिल्हेनि नरेन्द्र -
खिंद के च में फेस कहा था, में कह सकती हूँ कि ऐसा सखूब-
सूरत आर बहादुर ते दुलिया में न हागा | लुम घड़ी किस्सत-
बः है।... ....
सभा । साजे की रात इस पहाड़ पर का कर ऋत उस्स
शहर में जरूर सना न्यहिये ॥
तार:५ | ऐसा ही करेगे ॥
स््रभा० । में सममातो हूँ कि मर्दानी सुरत के बदले हमले।ग
फकीरी हालत में रह कर अपने के इससे ज्यादे छिपर सकेंगे ॥
.._ शारा० इससे सो काई शक महों, कस उस शहर मे
पहिछ्ला हिस्सा
ध् न्कए
बाजार से कपड़े खरीद फकीरी ढ डर की पैशाक दुरस्त कर। लूंगी ॥
ये देतने बेटी बातें कर रही थीं कि आश्पान में काटी का
घतधिर आई, बाय तरफ अंधेर, छा भया, पानी वस्ल ने छूगाय,
बिजली सलमकने जोर गश्जने छगी जिसकी डरघनी आव'ज
पहाड़ें से ध्क्कषर खा खा कर दस गुनी है। इन देते! बेखःरियेई
के जी के दृहलाने छगी, दे।नि। उठकश उस दश्बान में गई
जिसका हाल ऊपर लिख चुके है ॥
रात भर पानी वस्खता रहा भौर थे देनि। उ दी दालान मे
बैठी अयनी किस्मत की शिक्रायत ऋरनी रहीं, जब सचेरा हुआ"
पानी वरखना बन्द हुआ घृप निकल आई वे देना भो उठों और
खबेरे के जरूरी कार्मे से छुड४ पा एक चश्मे में हाथ मंतर था कुछ
मेवा खा कर शहर की तरफ चलने की तेयारी कर दो । तार ने
कहा-- कुछ मात्दूम नहों हमारे देने घोड़े! पर क्या गुजरी
शत भर पानी में दुःख उठा कर मर गये या जोते हैं ॥ शा
रम्भा० । ने घोडे अब वहां न हे।गे, किसे पेड से तेः वे वर्धे
नहीं थे जब बदल पर पानी पड़ा हारा किली तरफ भाग गये
होगे, हम के।गे। के भी अब घोड़े! को ज़रूरत नहीं है पैदल
चलना ठीक होगा जहां मन में आया गये जहां चाहा पड़ रहे,
मगर हां पहाड़ी के नीखे चल कर उन घोड़े के। जरूर देखना
चाहिये अगर है। तो उनके खेल देना उलेत हे।गा ॥
तारा | मेरी भी यही राय है ॥ हे द
का
नरेन्द्रमे!दनी दर्द
नम
वे देने पहाड़ी के नीचे उतरीं मगर घोड़े के घहां न पाया,
उम्भा ने कहा, “क्यें सखी में कहती थी न कि दोनें घोड़े भाग
गये होंगे । चक्े अच्छा हुआ बखेड़ा छूटा अब यहां ठहरने की
केाई जरूरत नहीं ॥7
इसके बाद वे देने शहर की तरफ रवाना हुई ॥
हाथ आज़ तक जे बड़े छलाइ ओर प्यार से पक्की थो उसके
धर्म के कठिन रास्ते का दुःख भेयना पड़ा | अभी तक जिसके
असाने की गर्म सर्व हवा छू नहीं गई थी उसके भांघरी और रू
के माटी बदा रत करने पड़े । चल्द्मा की कड़ी चांदनी से जिसके
स्वर में हद हे।ला था उसे कड़ी धरप से माखन से भी कोमल अपने
बदन के पिघ्रलना पट्टा | ले। कभी दस कदम भो जबरदस्ती से
नहीं चलाई गई थी भाज बह फेस मिट्टी फांकने के लिये मजबूर
की गई । जे: भे।जन करने के लिये दिन भर में दख दफे पूछी
ज्ञ.्ती थी उसे काई सुद्दी भर अज्ञ देने चाला भी न रहा । जिसकी'
आंख उबड़वाई हुई देख कर लेगी का जो वेचन है| जाता था
उसके भांखू पॉछने बाला आज काई नहीं | जे। है। नरे दर सिंह
की वराछत श्प्मा का आज यह सब दुःख भेगने पष्टे । धन्य है
बिचारी तारा के जै। ऐसे समय में थी अपनी प्यारे सखी का
साथ नहीं छै।ड़ती । यह खब प्रेम की बात है नहीं ते। किसे कान
पूछता है ॥ श
श्ेषडी थ्राद्टी दुर पर घूप से घयडा कर किसो पेड के नीचे
तक
घहिला हिस्सा!
६० 49५
टहरती, दूम केकर चलती, आंखुभों से अपने चेहरे के तर करती
दम दम भर पर हाय कहके जी के बुखार के निकालती हुई दिल
हलते दछते अपनी सखी तारा का साथ लिये हुए रम्भा उस
शहर के पास जा पहुंची जिसे पहाड़ी के ऊपर से देखा था ॥
शहर की बाहरी ह॒द्ठ पर एक खुन्द्र पहाड़ी थी जिसके नीचे
हाथें में छट्ठ लिये बद्माशी ठाठ के कई आदमी दिखाई पड़ें,
तारा ने चाहा कि किसी से इस शहर का नाम पुछे मगर वे सब
के सब बिना कहे इन दे।ने। के पास पहुंचे और इन देने से तरह:
तरह की वातें पूछने लगे ॥
केाई कहता है कयें। साहब | आाप किसके यहां जायेगे ? हस
ले.ग गयावाल के ने।कर हैं यहां आपका पण्डा कौन है ! कोई
ऋद्ता है! लाछजी जैया फे हम भादभी हैं हमारे साथ चलिये ।
केई आापुष्त ही में चिष्ठा कर कहता है--“अजी यह पुरविये है
हमारे जजमान हैं चले इडे तुम छेग कूडे बखेड़ा मचसे हुए
है। |” केाई इन दे।ने के बहुत पास आके कहता है आप मेरे यह
अलिये वहां टिकने का बडा आराम है अर हम यात्रा पिणडा भी
बहुत अच्छी तरह कर। देंगे, आइये यद्द रामसिला है पहिले इसी
का दर्शन कश्ना चाहिये नहीं ते। यात्रा खुफलछ न होगी । कोई
कहता है अभी ते यह आप ही छड़के हैं पिशडा क्या देंगे ॥
इसी तरह इन खकेगे ने चारों तरफ से रण्सा और तारा के
घेर छिया ओर अपनी अपनी बकवाँद करने छंगे । तारा ने उन
अरबफ माह सी
कथन ह८
खभे से कहा कि हमले।य यात्री नहीं हैं सैदायर के लड़के है
मगर वे ले।ग कब मानने ब.छे थे, इन देने के! यहां तक तड़ुः
किया कि देने की आँखे में आंखू डबहइवा आया मोर तार ने
आऋभला कर कहा, “तुमछाग बड़े शेतःव हो बतत नहीं मानते
ओर वैफेयदा सड़ ऋर रहे है।। हम झेग सुसद्मान दे!कर पिंडा
फसिय वा कयेत देने छगीे 2०
मुसच्णान का माम सुन कर जे छोग पीछे हे आर बेहदी
पाना के साथ आवाजा कसने लगे । ये दे।ने। अग्गे बढ़ीं तब सारा!
ने कहा, “देले बध्चितल | ये झे।ग याजिये के! किलना दिक्क करने
' हैं! अरप हमछेश अपने के सुसस्मान न दनाते ते! इन छेगे।
के टाथ से बहुत रड् दैति, तिस पर भी देखे: अब ये लेग गा।केयां
देने पर उतारू हुए. हैं ६०
रूसा ने कहा, “खुद्लाप चू। चके, साझायके के वकने
दे, अरब मालूम हुआ कि यह गयाकोी है, ताउद्भुव नहीं कि यहां
मरेध्ट्रसिह से सुझाकात हा जाय [४ इतना कह रस ने फिर
कर देखा ते। उन््हों शैताने में से दे आदमियों का पीछे पीछे
आते पाया | यह देख रम्भा बहुन घबड़ाई और तारा से बेलली,
“देखे अभी दुष्ट छोग पीछा किये चले ही जाते हैं, बड़ी मुश्किक
हुई, इन कोगे के मारे कहों यह भेद खुल न जाय कि हमऊेाश
औरत हैं और मर्दानी पैशाक केवल अपने के किपाने के लिये
पढ़िरे कै मगर ऐसा हुधा ठै। इज्यत पर आ बनेगौ और अपने
९ 0324 354
हाथों अपना गला काटना पड़ेगा ॥%
तारा बेली,“खैर कदम वढ़ाये चकेा--राम करे से है।थय---
कहीं सराय में चल कर डेरा डालेंगे फिर देखा जायगा ॥०
घहर भर दिन वाकी था जय ये देाते शहर में घुसकर खेजती
फिरती एक सराय के दरवाजे पर पहुंची | सठियारी अछी शाकतु
इस लेगें के खातिसदारी के साथ सराय में ले गई, एफ अच्छी
साफ केटडी इन देने के रहने के लिये दी और चारपाई तथा
विछेने का इन्तजाम करके पूछा, “ अगर कुछ बाआर से काने
की अरूण्त हो तो ले आऊं |” तारा ने कहा, “नहों एस चक्त
फिसी चीज की जरूरत नहीं है ।” यह सुन भटठियारी वहाँ से
हट दूसरे मुखाफिर की दाह में सराय के बाहुर चली गई मगर
इन देने के पास काई असवाब न देख कर हेरान थी ॥
गयावाल पणडे के दो आदमी जे। रम्भा अर तारा के पीछे
पीछे आ रहे थे इन देने के सराय के अन्दर जाते देख बाहर
फाटब्ड पर अब्क गये | अब सटियारी इस देने के हेख दिरझवा
चर फिर सशय के फाटक पर भेई तब ने दे।ने। आदमी सहि-
थारी से कुछ धीरे घीरे वातचीत करने छगे, इसके वाद अपने
कम र से कुछ निकाल कर भटठियारी के हाथ में दिया जिसे छेकर
उसने कहा, ' आप वेपरवाह रहिये में वन्देवस्त कर दूंगी ॥
न्तता
] ता श्र
|
तू
नरेख्द मेपहनी
“7 कपपा ४: का
नोवां वयान ।
भा और नारा ने रात उदासों और तकलीफ के साथ
न बिताई, सबेर: है।उे हो बुढ़िया भठिय:री उन दे। ने! के
पास गई और सामने बेड कर बातचीत करने छगी ४---
सटियरीज | कहिये, रात के किसी तरह वही तकछीफ ते
शाप खेगे। के! नहीं हुई ?
तारा७ | नहीं, हमलछेय बड़े आराम से रहे ॥
भरटित । यहां आराम ते हुए तशह का है सगर सापके तक-
लीफ जडार भई होगी क्शोकि मर्द का मेष बन कर अपने के
किपाने के तरदुदुद में धार ले|गे ने कुछ खाने पीने का भी इन्त-
जाम नहों किया, न वाज्ञार ही से जाकर कुछ सादा छाये |
ताशा० | ( ताउजजुए और घाड़ाइः से रत्मः की तर्र देख
कर ) छे। खुने। | बीवी भ.ठेयारी के हम लेगा पर शक है !!
भछि० । (हँस कर ) अभी आप इस झायक नहीं हुई कि मुझे
थोखा हैं, इसी शेनानी में मैंने जन्म चिताया, अपने लड़कपन
और जवानी के समय में मैंने कैसे केले ढड़ू रचे कि अच्छे अच्छे
चालाके की नानी मर गई, अभी आप खेगे की उच्च ही क्या है ?
तारा इएकर ज॑। में से।चने लगी, “यह बुढ़िया ता हमलेये॑
के पद्चिघान गई छेसा न है| कोई आाफत छाये, यह खयाल करके
दो पहिला हिल््सा ।
त्श्क््क्काौः
अपने कमर से एक अशफ् निकाल उल भठियरी के हाथ में
रखकर बोलो, “माई ! तुम्हें इन रूब बाते से क्या मतलब है.
हमऊछेग किसी तरह मुसीबत के दिन काट रहे हैं, दे! चार रोज
इस शहर में भी रहकर कहीं का रास्ता रंगे, इज्जतदार हैं, आचार
और बदमाश नहीं हैं तुमकेा चाहिये कि हर दरह से हमके!
छिपाओ और हमारी इज्जत का ध्यान रक््ले! ॥?
चुढ़िया अशर्फी पाकर खुश हा गई भर बाली, “नहीं नहीं,
भछा यह कैसे है! सकता है कि हम:रे सबब से शाप छोगे के
किसी तरह की तकलीफ है।, कया भशाऊ कि किसो के भेद
माह्ूम है। जाथ ॥०
इतनी बातें हे। ही शही थीं कि सराय के अन्द्र घोड़े पर
चढ़ा हुआ एक कड़का बीस बाईस वर्ष के सिम का खवशूरत
और बेशकीमत भसड़कीली पोशाक पहिरे आठ दिखाई पड़े:
जिसे देखते ही भ ठियारी उठ खड़ी हुई । रम्भा और तारे की
भी निगाह उसपर पड़ी, देखा कि हाथ में लब्बे रूम्बे छट्ट लिये
कई आदमी भी उसके साथ है जिनमें थे देने! आदमी भी है
ज्ञे कल सम्मा और वार के पीछे पीछे जाये थे ओर घटठियाशी
से बातचीत करके उसके हाथ में कुछ दे गये थे ॥
यह देखते ही रम्मा भर तारा का साथा उनका, तरह तरह
के शक उनके दिल में पेदा होने ऊगे ओर डण्के भरे कछेजए
फांपने लगा, चद सवार बराबर बहां-तक घब्ण आया जहा रस्मा
|
जा,
ऑल्गोहरी गा
और तारा केाटरी के दरवाजे पर चैठी थो ॥
चह सखथार इस देने की तरफ गौर से देखऋर सब्यारी
से बेला, “मुझे डिकने के लिये कोई जयद दे। |?
भस्ठे० | भापके रहते लायदा इस खराब में जगड़ कहा ?
छऊ्लियें उसदा निराला सझान आपके रहने दे लिये दूँ
सहठिवारी उनके साथ के सशप के बाइर खही गई भी
खरारे भर लक जे भाई ४
जब भ डेयारी फिर सगय में काई ते सखीये रमा और सारा!
के पाल चली गई भर बैठ कर ऋहने रूगी, “ यह बहुत बह
आदमो है, लाउ़ में दे। लीच दफे हमारे यहाँ आ कर दिका करने
छू, अमर अर रईसें के टिकने के लिये मेंते कई मकान भी
चससवा रकले है जिनमें सजा हुआ कप रा भर हर तरह का सामान
भी दुरूमत रहता है, उन्हों मकाने। में से किसी महान में इन्हें
शिल्ाथा ऋण्णो है, यह जब तक रहते हैं एक अशफी रेप देंने
तुम भी किलीः भाली खनदान की लडकी मःरूप होती है।
अशर कहे ते। तुम्हें भो एक अरूस सकान टिकने के लिये दूं ओर
बाआर से सदा वगेरह छाने के छिय्रे किसी हिन्दू मजदूरनी का
भी वश्देवस्त कर इूं, क्पे।किइस जगह आप छे गे के। हर सह
की तकलीफ हागी और भेद खुछने का सेफ बराबर बन। रहेगा,
आखिर सभेरे सवेरे आपते मुझ्ते पृ अशर्फो दी है उसी के
अंदौलत पक प्ोर अमीर का सो डेरा मेरे यदा लाया, जुझेस्सी
पह्िणा टिझपा।
डे हे
आहिये कि जहां तक बने आप छोगों के आराम के साथ रहने
न्या बल्दे!वरूत करूं ०
ता ने कहा, “इस सवार के पियादे में कई आदमी ऐसे
हैं जिन्हें में पहिचानती हूं क्ये।कि कर शहर के बाहर पहाड़ी
से यहां लक बे के:ग मेंशे पोछे पीछे आये थे ॥०
मंडे । हां, वे याबाल पणडी के नोकर हैं. उनका काम
ही है कि शहर के बाहर पह्चाड़ी के नोजि जिसका नाम रामसिष्ठा
हैं बठे रहसे है, जब काई सुसाफिश भाता है दव उसे अपने सा छिफ
का अजमान बनाने के लिये काशिश करने हैं | इन्हें अपना
जजमान घना भाज इन्हीं के साथ वे छोर आये हैगे जिन्हें कल
आपने देखा था ॥
तः
तारा० । झूर अयर हमलेगों के कप्यक काई उस्दा मकान
है। ले! दे। ॥
यह झुध नहियारं वहां से उठ सराय के बाहर सो गई
और धड़ी मर के बाद फिर लाट आकर तःरा से बाली,“ च लिये
सब दुरुस्त कर आई हूँ [०
ताश और रमस्मा का साथ ले मठियारी सराय के बाहर हुई
झौर थेाड़ी दूर जाकर एक सुनसान गछी में घुली | कई मकान
आगे बढ़ एक छे.टे से मकान के बन्द दर्वाजें पर खड़ी होगई
ओर चासी से उसका ता खेला ज्ञा उलके भांचल के साथ
ध्
चंधी हुई थी ॥ हे
खिल
शो
अरेमद मे इनी करे
दैने। के लिये हुए मकान के अन्द्र गई, यह मकान अंदर
से भी बहुत साफ भर मसुथरा था, कुल चीजें जरूरत की उससे
मै।जूद थीं, एक कमरे में कई शीशे ऊूगे छुए थे, जमीन पर फर्श
और उसके ऊपर दे! चारपाई विरछ हुई थो जिसके विछेने की
सादर सब्ज रेशम को डोरियाँ से खूब करी थी ॥
शूभा और नाश के पयादे ल्ीजे को जरूरत न थी सगए
इस मक्तान के देखकर खुश हुई । तारा ने सठियारी से कहा कि
सकाल ते। तुमने बहुत अच्छा दिया अब एक हिन्दु मजबुश्सी
का वन्वेगग्रस्त कर दे। से पानी वगेरह का भी इन्तजाम है| जाय
आर दे। चार जरूरी चर्तन भी वाजार से ले आये !
भ्रठियारी दाड़ी हुई गई और शेड़ी ही देश में हिन्द मजदू-
रनी भी हे आई ओ गले में तुलली की कशठी पहिने हुए थी ॥|
भठियारी चली गई, जिन जिस सीजें की जरूरत थी सब
भजदुरती को मारफत बाजार से मेगवा छी गई | इस भकान में
फआ न था इसमिये पानी सी बाहर ही से मंगवाना पड़ा ॥
कैने ने सान किया, खाने के! बना कर भेाजन कर्ने वाद
दर्वाजा मकान का बन्द ऋर पछकछ पर जा छेटों, नींद आगई,
जब थेड़ा दिस बाकी रहा तब उठों ।शस्मा ने तारा से कहा.
“बहिन आज रात के मर्दाने मेस में घूम वार भरेस्द्लित की
दे लेसी साहिये तारा से कही जझर आज रात के इस
छाग तुर्मपे 07
छ््डु प्रहिएा ह्श्सि
02४४५ काल
हांथ संह जेने के लिये पानी की जरूरत पड़ी, मजदूरनी
के पुर्ारा चद माजूद न थी। ताटा ने रघ्मा से कद, देखे
हमने उस नाकझाउक से कह दिप्राथा कि बिना पूछे बाहर ले
जञाइये मगर वह चली गई, में पहिले जा कर दृस्वाजा बन्द
कर आउऊँ ॥०
यह कह ताश नोजे उतरी, दृरवाता खुछा दुआ था.द क मे
के वाहर छू् छिपे हुए कई आदयी दिलाई पड़े जितमें थे दाने
भो थे जे रामसिद्रा पदाड़ी से रम्मा और तारा के पोछे पीछे
आये थे भोर दूखरो दके सवार के साथ साय सराय में दिखाई
पड़े 9 ॥
ते रा इत,सरभों के दब ले पर देख कर घबड़ा गई भर फई
तह की बातें सेचने छगी, अन्दर से दवा जा बन्द करमा चाहा
मगर न है। सका क्यों कि वह जज्जीर टूटी हुई थो जिससे दवाजा
पहिछी मतेबे बल्श किया था, अब वह और भो घवड़ाई इतने मे
द्वजे के बाहर बडे हुए कई आद/मयों में से एक ने कुछ हं/स
कर कहा, “अब यह दबज्ञा सोतर से नहों बन्द है। सकत। ॥
यह खुन तारा के होश जाते रहे, दा डी हुई ऊार आई और
श््भा से वाली, “के बहिन | गजब है। गया, इज्जत वचमे की
केाई सूरत नजरनहीं आती, दरामजादी भठिया री ने पूरा घेखा
दिया अब हम लोगों को चाहिये कि अपने के कैदो समझे और
ज्ञान से हाथ थे। बेडें
रम्भा ने धवड़ा कर पूछा, “क्यों क्यों क्या हुआ £” इसके
जबाब में घवड़ाई हुई तारा ने जलदों से सब हल कहा जिसे
सुन रम्मा का क ठेजा घक घक करने ऊू "ओर देने आखों से
भांखिओं की बूदें स्पायप गिरने लूगी। तारा ने किए कददा--
ह्
शा
नरेन््द्रनेहनी ! ।
ज्ल््कृकृफफु
बदन! अब रेने से काई काम न चकेगा आन बचाने को फिक
ऋरशती आहिये ॥”
स्स्भा० । आन बचाने की फिक्न कया की जाय ?
वारा० । जहां तक है। खूब चिलाना चाहिये जिसमें इधर
उधर के बहुत से आदमी इकई है! जाय॑ और हम ठेणों को
अपना दुःख कहने का मौका मिले ॥
रस्भा०। यह मकान ऐसी गली में है कि सडुक:तक आवाज
भी ने जायगी ॥
तारा० | ता भी कई पड़ेस के आदभी इकई ही जञायंगे ॥
रम्मा० । दर्बाजा ता इस लायक उन्होंने नहों रफ्खा कि
बल्द् किया ज्ञाय मगर सीढ़ी की किवाड़ियों का क्या बिगड़ा
है--इसे ने। बन्द कर दे। फिर शेने चिल्लाने की सेना ॥
“हां यह दे। मुक्के याद ही नहीं रहा |” यह ऋहती हुई तारा
दे।ड़ गई ओर सोढ़ी के कियाड़ खूब मजबूती से बन्द् कर आई
इतने ही में घमधपाते हुए कई आदमी नीचे के चोक (भाँगन)
में आ एहुँचे। तारा ने फांक कर देखा ते। वही गयाबाल पण्डा
जिले सराय में देखा था ओर कई आद भियें के जिनमें वे देने
भी थे जिन्होंने रामसिला पहाड़ी से रम्भा और तारा का पीछा
किया था साथ लिये आ पहुंचा है ओर समे के नीचे छोड़
आप ऊपर चला आता है ॥
सोढ़ी की किवाड़ी बन्द थी इसलिये वह यकायक इन देगा
के पास न पहुंच सका और जज्जीर खेलने के लिये आरजू मिन्नत'
करने रूगा | यह देख रम्भा और तारा मकून को छत पर चढ़
गईं। इस सकास के साथही सटा हुआ दूसरा सकान देखा जिसकी
छत बहुत नीची न थी, यद्द देने उसो मकान में कूद पड़ों ॥
पहिला हिहपा $
श ७७:८५ ३४
दूसवां बयान ।
दी का समय छेडे से जद्ुुछ में एक बने पेड़ के नीचे
आठ दख आदमी बैठे आपुस में वात्य,त कर रहें हैं ॥
ये सब केान है ! इसके किये साफ ही कद देवा ठीक है कि
ये दाग ये ही मलाह हैं जिनसे सरेन्द् सिह से बातलीत हुई थी,
जब ये लेनी मुणत्र और बहादुर सिह के कोटा किएती के
पाल छोड़ नाव किराये करने गये थे । इस लेगे। में एक ज्यादे
बुड॒ढा है जिस नरेन्द्रसिंद ने पहिस्े नहीं देखा था | शायद उन
खो का सदर हैं। ॥
एक०। बड़ी भूल ले यह है। गई कि नरेन्द्र सिह के ते पकड़
लिया ॥ कि, न्
दूसरा०। हु, अगर उनके गिरक्ार कर छेते ते! बस चारेः
के ठिकाने पहुंचाते,फिर कोई पूछने व पता छगाने वाला भी
ने रहता,अब ते! एक खिन््ता सी छगी रह गई ॥
बूढा० अजी ईश्वर ने अच्छा किया जे। तुम लेगे के नरेन्द्र-
सिंह के पकड़ने का हौसला उस समय न दिया, नहीं ते ऐसी
हालत में जब कि इमारे साथी के मुद्धावा दे कर बहादुरसह
डे गया है, बड़ी मुश्किल हे।ती, हमलेगेई का खैफफ ते! इस समय ,
भी बहुत कुछ है क्योकि नरेन्द्र सिंदद का बाप बड़ा ही आफिय
हू
जरेन्द्रमेहनी हे
7>कूलकुटून
है, साझा ओर वहादुरसिंह जरूर उससे जा कर सब हाल कहैंगे
ओर हम लेगे का पता देंगे ॥
चोथा० | इसमें से। कोई शक नहीं,फिर क्य करना चाहिये!
पांचवां ०। हमलेगे का ते। जमा पूंजी से मतलब था; सेः
दैने औरते! के गहने उतार ही लिये । इतनी भारी रकम जन्म
से क्ाजञ तक हाथ न लगी थी, अब उन देने का अपीन के
अन्द्र पहुँचाइये, बल हे।गया |
बूढ़7०। न मात्यूम तुमलेगों की बुद्धि कहां चरने चली गई !
देने आअरते के सार कर क्या अपनी जान बचा छोरी ? सरेच्द्र -
सिंह तुमझागा का छोड़ देगा ? नहीं जानते कि उनके यहा कैसे
कैसे वेढव पता लगाने चाले जासूस मौजूद हैं ? नरेन्द्र सिह के
उतने गहने की परवाह नहों है जे। हमलेगे[ में उन दे।ननि। ओर"उते
के-डतार छिये हैं, मगर उनकी जानें पर आफत आंते ही हम
लेगेए की - जड़ बुनियाद तक वाकी न रहेगी इसे खूब सम
लेना ॥
पहिछा० । फिर क्या किया जाय ?
बृढ़ा० | वस इस वक्त यह मुनाखिय है कि के देने शत
छोड़ दी जाये, घूमती फिंरती आप ही नरेन्द्रखिंद के मिल
जायंगी, उनके मिलने पर फिर हम ले।गगे की इतनो खोज न
करेंगे इसके साथ ही चह मकान भी हम छेगेय के खाली कर
देता जाहिये, उसे अब उज्नडा ही हुआ समझे ॥ .
शं
पंडिछा हिस्सा !
३७, ४४“ कऋुफुडे7
तीखरा० | हमले.ग ते हुक्म के सुताबिक काम करेंगे नफा
झुक्लान आप समझ लीजिये॥
बूद्ा | हम खूब सेच छुके, इस काप्र में अब देर करना
अच्छा नहीं है ॥
इस्सके चाद लब॒ उठ कर एक तरफ के रचने हुए ॥ «5
नरेन्द्रमाहनी
“कहता न
ग्यारहवां बयान!
लाहे। का पता व छगने से मेहनी ओर शलाव के गम
में नरेन्ठ सिद् वेहिश हेऋर सिर पड़े, घण्े भर के वाद
उन्हें होश आया, उठकर तल्यार स्यान मैं की ओर नाव के नीखे
उत्तरे, मगर माहनी, गुलाव और बहादुरसिह के लिये तबयत
बेचेन थी, बा से धीरे धीरे एक तरफ रवाना हुए सगर यह
नहीं जानते थे कि किस तरफ जा रहे हैं आगे जड़ाल मिलेगा
यथा शहर ॥
कई दिने। के धाद जड़ली फरले से गजारा करते हुण पक
घने जड़ुछ के किनारे पहुंचे, बिना कुछ खबाक किये यह उस
अड़ुल में घुले। जैसे जैसे यह भागे जाते थे जड़छ रसनीक और
खुध्ायना मिलता था, यहाँ तक कि शाम होते शयह ऐसे ठिकाने
पहुंचे जहां के जड़ल के लम्बा चौड़ा बाग ही कहना मुनाखिव
है, लाखू, आसन, मेंद, पारजात पगैरह् खुदरी ( आपसे आप
डउगने वाले ) दराहों के अछाबे कायदे से दाथ के लूगाये हुए.
खुशबूरार फूल! के पेड़ मो दिखाई पड़े ओर जमीन'भी बर्दा को
साफ ओर खुथरी थो । दाहिनी तरफ कुछ दूर पर पेड़ की
“मिलमिल्ाहट में एक झुपेद इमएत भी दिखाई पड़ी ॥
उस जगह पहुँच कर॑ हमारे नरेन्द्र सह अड़ गये और कुछ
ख्ि
पहिछा हिस्सःर !
कप 5०७३ न्यू
गैर करने ऊगें | इतने हो में इनकी मिगाह बाई तरफ जा पड़ी,
देखा कि कुछ दूर पर कई कमसिन ओरतें खूबसूरत लिवास
पहिने, अठखेलियां करतीं इधर उघर थहल रही है, कभी घीरे
घोरे चछतो हैं, कभी दे।ड़ कर एक दूसरे के! पड़ती या धक्का
देती हैं, कभी केई सीटी या ताली बजा कर खूब जे।र से हंस
द्वेती है ॥
ऐसे दुःख की अचस्था में भ। नरेन्द्र सिह का जी उस तरफ
जा फंला, गैर के खाथ देखने छगे, चाहा कि दघर न जाये मगर
ज्ञीन माना, धीरे घीरे उर्स! तरफ बढ़े | जब उन के'गे। के पास
पहुँचे रुक गये | इतने में उनमें से कई आने की निगाह नरे-
स््रसिंद पर जा पड़ी, सकपका कर इसकी तरफ देखने लगीं यह
तक फि कुल ऑरते ने इन्हें ताज्जुब की निगाह से देखा जीर
आपुस में कुछ इशारे से वातलीत करने लगों, जिससे नरेस्द्र-
सिंह के भी माक्छुम है। गया कि उसके आने पर उस सभे! के
आश्चय्य है ॥
इन सभे। में से एक ओरत चाल दाल, पाशाक, जेबर और
खूबसूरती के हिसाब सभों में सदर मालूम दाती थी ये ते। सभी
चश्चल और खूबसूरत थीं मगर उसके मुकाबिले की एक भी न'
>यी जिसने उदास और गमगोन नरेन्द्र सिह का दिछ भी अपनी
लरफ खेंच लिया अर्थात् नरेन्द्रसिहकी घोखा हुआ कि यह
माहनी है ॥« है
ह्व
का
नरेन्द्रमाहनी
4
बाप ५
प्ेहमी का सथार ब॑ बते ही नरेन्द्र सह उसकी तरफ रूपके
जिसने उन औरतों के और भी आश्चर्ष्य हुआ | इन्होंने जल्दी से
पाल पहुंच कर पूछा, “बये सेहनी' | तुम यहां कैसे पहुंचीं ?
में कब से तुम्हारी खाज में परेशान है। रहा हूं ॥?
“ उस औओरस ने इसकी वात का काई जवाब न दिया और अपनी
हमजे।लिये। की तरफ देखकर खिर नीचा कर किया। नरेन््द्र-
पखह मे फिर पूछा, “क्ये। छुय क््यें हो १”
बह फिर भो कुछ न वाली हा अंखें से आजूको बूदें टपा-
छाप शिराने छगी ॥
पैसी दशा देख नरैन्द्र सिंह भीर भो बेचम होगये और बेखे-
“क्या सबव है से। तुम अपना हाल कुछ नहीं कहती अरश रो रही
है।, तुम्हारी यह सूरत नहीं रही, चेहरे में भी फर्क पड़ गया,
मालूम होता है च्ष। घाए मुलाकात हुई है, मारे गम के तुम्दारो
जअपातो भा तुमसे रज्ञ देने छगी। में ते। समझता था झुकसे
मिल कर तुम खुश होगो मगर तुम्हें रोते देख जी ओर बेसन
हाता है, कहे। गुलाब ते। अच्छी तरह है वह तुम छेगे के साथ
दिखाई नहीं देती, कहां है १०
शुलाव छा भाम सुमकर बह ओर भी रोने रूमी बडिक उसकी
सदेलियों। की भी अंखें उवड़वा अप जिसे देख नरेन्द्र सिह के
विश्वास है| गया कि जरूर शुलाब किसी आफदत्र में फैस' गई
था जान ही से शुजर गई ॥ 2
पहिला हिस्ला ।
शाप
दे
नरेन्द्र सिंह के कई मर्तबे पूछने और जिद्द करने पर वह अपने
चल से आँख पोंछ कर बोली :--
सब कुशल है, शुल्वाब भो अच्छी तरह से है, वाकी हाल में
इस समय न कहूंगी, जल्दी क्या है आप भी थके माँदे आये हैं
चलिये मकान में आराम में कीजिये, निश्चिन्ती में जे कुछ कहना
है कहंगो, अरा आप इसी जगह ठहरिये में अपनो सखियें के
एक काम सौंप लू सब आपके साथ चल ॥
इतना कह नरेन्द्र सिंह के उसी जगह छोड़ इशारे से अपनी
सखिये। के बुछझाकर किनारे चछी गई आर आधी घड़ी तक
आपुस में कुछ बातें करती रही इसके बाद फिर नरेन्द्र खह्द के
पास आई ओर बेलो, “चलिये मकान में क्ये।कि अब अंधेरा!
हैे। जाने से यहां टहरने का भी मौका नहीं है ॥”
मरेन्द्रसिह के साथ छिये हुए उसी मकान में गई जिले
उन्हेंनि था आ कर कुछ दस पेड़े| को आड़ में खमकता हुआ
देखा था ॥
इस मकान के दरवाजे पर कई सियादी नड्भी तरूचार लिये
पहरा दे रहे थे जे। एक नये आदमी के साथ अपने मालिक के
आते देख उठ खड़े हुए।। नरेन््द्रसिंद का हा्थ पकड़े हुए माहनी
मकान के अन्दर गई, पोछे उसकी सखियां भो पहुंचीं ॥
फाटक के अन्दर जाकर एक रम्बे चडे बाग में पहुंचे जिस-
की र चिशें निद्ायत खुबसूरती के,साथ चनाई छुई थीं, पहाड़ी
ख्
के न्णन-- थे असनाक सनम रन अत अफनीफन प्नन मम
ज-++5 ७७% ब्कब्मय “पलक त ३ ००->-७०७न्मपत्भजट जब्य + जा + +
इक... अबफा कतयार अक ॥े
# _> ७ ह-० मय पिलअलध्म८० 4 +बीर की काफम्बप्टएकलका.. +-
लसरभ्द्रमै।हनी ५
बा रु.
और जड़ली फ़ूछ पत्तियां के इलाने खुशवदार फूल के पेड़ भी
वैशुमार रूगे हुए थे जिनकी खुशव से तमाम बाग गमक रहा
था, सामने ही एक रूस्वा चीड़ा दे मश्जिका मकान वनों हुआ
नज़र भाया |
नरेन्ट्रसिह का हाथ पकड़े हुए उस मकान के ऊपर चाल
खरड में ले गई ओर पक सजे हुए कमरे में के आकर बैदाया ।
नरेन्द्र सिह के इस वक्त बड़ीडी खुशो थी, मगर साथ ही
बसके शुलाव के देखे बिता जी वेचेन था, बैठतेही पूछा, 'क्ये
' औआहनी | शु्ाव कहां है ! उसे जरुर बुलाओं में देखेंगा ॥०
मेाहनी ० | आज़ आप उसे नहीं देख सकते ॥
नरेन्द्र ० । क््यें !
मेहलो० । इसका सबब भी आप से कहूगी ॥
, चेरेन्द्र3 | बज्छा यह ले। वलाओं कि तुम्हार। सूरत ऐेसो
: सयें है। गई ? मालूम दाता है कि सात आठ यर्ष के बाद तुः्हें
. देखता हूं ॥
माह ० | (ऊंची सांस लेकर) एक ते तुम्हारी ज़वाई, दुसरे
न रु,
' चहिन के गर ने मेरो यह हालत कर दी ॥
सरेन्द्र० । क्या शुराब के सिवाय अपर भो सुम्दाशी कई
बहिन थी ?
मेहनो ० । ज्ञी नह्ढीं ॥
नरेज्द्र० फिर कफिलका ,गम हुआ ?
पहिला हिस्सा
45 ““फुलए7
मेाहनी० । उसी शुलाव का |]
नरैन्द्र० | (चॉककर) शुलाब के। क्या हुआ, कहां गई ?
मे।हनो ० । (आंख शिरा कर) बैकुएठ चली गई ॥
गुछाब के भरने का हाल सुन नरेन्द्र सिंद की अजब हालत
है। गई बहुत देर तक रोते रहे ॥)
नरेन्द्र० । अफसास ! अभी तक तुम्हारा हाल भो न मालूस
हुआ कि तुम कान है। ओर किस सबब से तुम्हारी चंह दशा
हुई थी
सैहनी० | क्या इतने दिल अलू्ग रहकर भी आपके मेरा
हाल मालूम न हुआ
नरेन्द्र ० । कुछ नहीं ॥
मेहनी ० । अच्छा ते में ज़रूर अपना हाछ कह्वंणी ॥
नरेन्द्र ० । भला इतना ते बता दे। कि उस फकिश्ती पर-से'
तुम लोग कहाँ गायव है गई और बहादुरसिंह कहां खला गया *
मेहनी० । इसका हाल भी अपने हाल के साथ कहूगी, इस
समय आप कुछ भेाज़न करके आराम कीजिये क््येंकि आपके
चेहरे से धकाबट और सुस्ती बहुत मालूम होती है ॥ -
नरेन्द्र ० । तुम्हारे मिलने ही से थकाबट ओर सुस्ती विद्कुछ
जादी रही, मगर अफसेस ! वेचारी गलाब......
इतना कह कर फिर रोने रंगे, मेककह्नी ने बहुत कुछ सम-
काया झौैर कुछ खाने के लिये जिद किया मगर नरेण्द्रसिद् ने
सै
७ "व -ाफतका पेकरपम बनती क्न्ीओिनण ५» नम ज-धज+ध ++
० “कल फटनणमउत दाम >ईी कक. | ओि का पानिकओ तर सक। पनने चिकन. हिल पपऑिणाणरी
की ७+>२+-्क कत्ल
$।
, चरेन्द्रमेहनी
]
ह््ड््ड है
. ऋुछ न सुना लाचार उनके चारपाई पर किटा और उनसे बिदा
' है। नीचे उतर भाई ओर एक दूसरे कमरे में गई जहां उसकी
सख्वियाँ बैठी उसकी राह देख रही थीं ओर शराव से भरी हुईं
. ऋई बोतके उस जगह रकखी हुई थों जिनमें से थाड़ा थरेड़ा
गिलास मैं डारू डाल कर वे खूब पी रही थीं । मेहनी के आते
९२५
केख उठ खड़ी हुई और हँलख कर बोलीं, “मुबारक है। ईश्वर ने
. जेरे छिये कया खूबसूरत जवान भेज दिया ॥”
माहनो ० । ( हँस कर ) देखिये जब रह जाये तब ते। ॥
घएुक० | तेरे पंजे में फेसा हुआ कब निकल सकता है हां तू
' श्थुद निकाल वाहर करे ते दूसरी बात है ॥
मेहिनी ० । नहीं नहीं, इनके साथ कभी वैसा थ करूंगी औैला
खुसरे के साथ किया है क््येंकि ऐसा खूबहरत और बहादुर
, जवान असी तक मुझे केाई भी नहीं मिला था ओर मालुप है।ता
', हैं यह जरूर किसी राजा का रूड़का है ॥
धक० । इसमें ता कोई शक नहीं, आओ बैडे। कहे क्या क्या
बातचोत हुई ?
मेाहनी० । इस वक्त कोई विशेष बातचोत ते नहीं हुई, सिर्फ
' शुराव का हाछ पूछा से मेंने कह दिया कि मर गई यह खुन
. चहुत शेये पीछे फिर पूछा कि तुम अपना हार बताओ तुम्हारी
5.
5
४
' चद्द दशा केसे सई थी किएतो पर से कहाँ चक्ती गई और बहा-
' डुरसिंक कहाँ वया। इसका, जवाब क्या देती * मुझे कुछ मालूम
पड
पहिला हिस्सा! ॥
- पाप
कि
ते था ही नहीं, न में वहादुरसिह के जाज़ती थी कि वह फैन
बला है, आखिर यह कह के टाल दिया कि कर कहूंगी ॥
दूसरी० । उनके यह पूरा विश्वास हेगया कि मेाहनी सुम
ही हे ॥
तीसरी० | इनकी शक्कु सूरत भी ते मेहनी की सी है, फक
इतना ही है कि उससे यह उम्र में सात चर्ष बड़ी हैं ॥
मेहनी ० । अब मुझे सी फिक्त हे कि करू अपना हाल क्या३
कहूंगी' ॥
एक० । पेड़ से छथ्की हुई माहनी और जमीन में गड़ी हुई
शुरूाब को जान जरूर इन्होंने दचाई है या इनसे उन देने: की
किसी तरह मुठाकात है! गई है ॥
दुसरी० | जरूर ऐसा ही हुआ है। क्या हुआ जे जी मैं आये
बनाकर अपना हाल कह देना ॥
तीसरी० । अगर माहनी ने पहिले अपना हाल कुछ कह?
हो। तथ १
मेहनी०। नहों,माहनी ने अपना हाल कुछ नहीं कहा, क्ये कि:
बात ही बात में यही दरिया करने के लिये मेंने पूछा था कि
मुझ से झुदा हा कर भी मेरा हाल तुमका नहीं मालूम हुआ ?
इसके जवाब में वे येलेकि “कुछ भी नहीं |” इछायवे इसके
पहिले ही उन्होंने पूछा था कि मुझे अभी* तक यह नहीं मालूम
छुआ कि त्वुम कान है।, इन सब बरतें के खयाल क़रके में सम
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आती हूं कि मेहनी अपना हाल कुछ न कहने पाई भोश इनछ
अक्रम है। गई |
घक० । तुम्हारा सोचना बहुत ठीक हैं. ॥
मआहनी०। मुझे ते इनका बाम मी नहीं साल्भुप ॥
«... दूसरी० । कछ तुम उनसे कहना कि तुमने भी ते अपना
ठीक ठोक ताम थे। हाल न बताया तब थे खुद ही करेंगे कि मेश
' आम ठीक फेडानाही हैं भोर अपना हाछ भो कहेंगे ॥
इतने में एक सखी ने शरायका गिलाख भर के भाहनी के हा थ
में दिया कौर कहा, 'ले। आज बड़ी खुशो का दिन है, रोज़ से
; दूनी पीनो चाहिये, पीये। ओर हमझेगों को तरफ भा खबारू
ण्वखे। ईश्वर ने इनके यहां भेज दिया है ते। ऐसा न है। कि
इमके आने का सुख तुम ही छूटे! ॥*
. इसके जवाब में माहनी ने हँसकर कहा, “क्या मैं तुम कैगों
! का रोकती हूं ? इसमें मेरा बस है या उनका ?*
श्ड़ी देर तक हँली खुशो को शेतानी दिलगी रही, इसके
बाद छींडियां खाने पीने का सामान भी उसी जगह के आई,
खब मिलझ कर खाने ओर शराब पीने रूगीं यहां तक कि नदी में
' .+ अस्त है। उसी जगह सब की सब वेहेश जमीन पर छैश गई फिसी
* केप तमेबद्ल की सुथ न रही ॥
), १... इस्त भाहनी की खख्कियेर में दे। सखी पेसी थीं जे शराब .
को हाथ फमी बची छृती धी.ओर दर तरह से नेफ आर दयात्द
पहिला हिस्सा
चर लटक
थीं, दिन रात का ज्यादे हिस्सा इंश्चर के भजन और ध्यान ही'
में गंबादी थीं और यह शैतान की मणइली उन्हें भद्ठी नहीं
से छूम होती थी मगर क्या करें छाच,र हेकर साथ रहना पड़ा
था, इनका नाम श्यामा और मामा था ॥
यह मेहनी ते अपनी सखिये। के साथ शराब के नशे में
है बेहैःश पड़ी कि पहुर दिन चढ़े तक तनायदन की सुधघ न
श्ही मगर वेखारी एयामा शोर सता कुछ रात रहते हो उठी और
जरूरी काम से छड्ो पा. नहा थी साफ कपड़े पट्चिर कर नरीफ्ध-
सिद् के पास पहुँची और दिले।जान से उनको खिदमत करने
छगों ॥
मेहनी की सूरत मैं फक क्ये पड़ गया | सूरत ही भमहीं वह्कि
चाछचलस, निगाह, चिंतवन ओर वातचीत भी दूखरे ही हु
की नज्ञर आती है, आंखें में उतनी हया भी नहीं है सिवाय इसके
शहर छोड़ जड्ुल में रहना इसने क्ये। पसन्द किया और अन्दाज
से यह भी मालूम दैतः है कि मुझसे जुदा होकर इसने मेरी खाज
बिष्कुल नहीं की | नरेप्दर सिद्द ने इसी लय और खयाल में रात
वबिनाई और धडी घड़ी उठकर देखते रहे कि सवेश हओआ था
नैह्ों ॥
अभी अच्छी हरह आसमान पर खुपेदो नहीं फैली थी, एक
तरह पर सवेरा है। चुका था, नरेन्द्र सिंह पछड़ पर लेटे सेट
दरवाजे की तरफ देख रहे थे 'कि दा में जल का छोया लिये
थ
नरच्द्मेहनी
जूल्मृल्पू ०
श्याप्ता और भागा पहुंचों कौर उसी रास्ते से होकर दूसरे कमरे
में चली गई और ले।टा रख कर फिर छाट गईं। थोड़ी देर में
मद घोने के लिये दुतुअन, मज्ञ़न और चोती गमछा इत्यादि कुल
सामान लेकर आई भोर उसी कमरे में जिसमें जल का लेटा
श्ख गई थीं इत घछोजे। के भी रकक््खा, इसके वाद नरेच्त खंह के
प्ढ ऊ के पास पहुंची । इनके पास आते देख नरेन्द्र सिंह ने जान
वुफ कर आंखें बन्द् कर को ओर अपने के सेता डुआ वना लिया |
श्यामा पैर दवाने और भामा पड़ भ्छलने छगी । थेड़ी ही देर
वाद नरेन्द्र सिंह उठ बैठे और उन्होंने पूछा, ' सबेरा है। शा ?*
श्यगा० । जी हां, उठिये मुह हाथ बोइये ॥
नरेन्द्र० | ( उठ कर ) में!हनी कहा है ?
श्यामा!० । मोहनी कौन ?
नरेल्द्र० | तुम्हारी माछिक ॥
इयामा० । जी हां, धद अभो तक सेतती हैं ॥
नरेन्द्र ० । बहुत देश तक साया करती हैं॥
'इयामा७ । अब उनके उठने का सी समय है! गया तथ तक
आप चाहें ते। स्तान सन्ध्या से छुट्टी एए सकते है |
मरेन्द्र> | में भी यही चाहता हूं ॥
इतना कह नरेख्द्र सिंह पलछडु के नीचे उत्तरे, श्यामा और समा
रन दिले।जआान से काम करने पर मुस्तैद है। गई। इनकी चालाकी *
और कुर्ती के साथ काम करने के सबब से नरेन्द्रसिंद जरूरो से
पहिला हिस्सा!
धर जा + + आआ
छुट्टी पाकर दतुअन, कुला, स्वान, सन्ध्या इत्यादि से चहुत जदद
मिश्चिन्त है। गये, किसी बात की जरा भी तकलीफ ने हुई ॥
श्यामा और भाभमा जिस प्रेम के साथ उनकी खिद्मत करती
थीं डसे देख यह दडुः हागये ओर से।चने लगे कि ऐसी सलीके
वाली छींडियां आज तक मैंने नहीं देखीं, सिधाय इसके इन्हे
लैंड कहते सी शर्म मालूम देती है। चाहे इनकी पैशाक चेश-
कीमत न है। फिर सी बातचीत भौर चार ढाल से यह छोटे
दर्ज की ओरते नहीं मातम होतीं, इन दी।ने। का रडू कुछ साँबलः
है ते क्या हुआ मगर इनके रूपवान देने में केाई शक नहीं, तिसमें
'यह एक जै। अपना नाम श्ययमर बताती है परम सुन्द्री है और
लक्षण से मालूम हाता है कि अभो कुंआरों है। भहा ! कया हीं
सुन्दर मुख और बड़ी वड़ी रल्लाकर आंखें हैं, अभी तक मैंने
इनकी खुन्द्रता पर ध्यान नहीं दिया था सगर अब जे नैर
कर के देखता हूँ ते यही कहने के जी चाहता है कि श्यामः
खूबसूरती में किसी तरह भी मेोहनों से कम नहीं है बहिक
शण और शीढ में उससे वढ़ कर है। इसे ते सामने से जाऋे
देने का जी ही नहीं चाहता, न मास क्यों इसकी तरफ मेरा
बिच खिंचा जत्ता हैं, माहनों शावे ते। में पूछ कि ये देशमे
काल है ॥
इसने हो में नोंद से जाग /अमुद्दाई,ऊैतोी हुई मे।इनो भी आप,
है ६ भू
पहुंची, इसका खुमार घन्ती तक उत्तरा न था, आते ही नरेन्द्र
छ्ु हा
अर्म्द्भाहनी ॥॒ दे
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सह के पास बैठ गई भर गले में हाथ डाल बाली, ' क्या अभी
सेाकर उठे है। ? स्तान न करोगे १”
मेहनी के मुंह से शराबकी ऐसो' बुरी समक चिकलो कि
नरेण्ठ सिंह का की दिगड़ गया, साहनी का हाथ अपने गले से
बअनकार भा उठ खड़े हुए जौर बोले-- में तुम्हारी इन देने
चाकाक हा डेये। वी बशछत स्थान पूजा से उुद्दो पा चुका! हूं,
तुम ते। शायद् अभी लेकर उठो है ॥7
भै-हनी का हाथ अपने गछे में से निकाल कर थकायक इस
तरड भरेन्द्रसिह का उठ जाना उसे बहुत ही दुश माह्ूम हुआ
और काछ छाल शास्थें कर मरेन्द सिंद की तरफ देखने कूगी ॥
नरेन्द्र सिह भी तवीयन में सोचने छगे कि मेहनी के क्या
शैगया | थह ते वातचीस से पहुत नेक आर शरीफ खानदान
' की ऊड़की मालूम है।ती थी मगर भब इसका रह दड़ बिलकुल
बव॒छा हुआ देखता हैं, जब मैंने झुलाब कत दाल इससे पूछा ते।
वेली कि “बह ते। मर गई ।” असी सुकसे इसका खडू छूटे
पन््द्रह दिन भी नहीं हुए, क्या इसी बीच में गुलाब के-मरमे का
गम इसके दिल से जाता रहा और हँसी खुशी में दिन बिताने
कगी ? क्या किसी शरीफ खानदान की कुंआारी लड़को का ऐसा
करता मुनार्सिव है ? यह ते बिब्कुल असम्य अं. र कुलटा मालूम
'है।ती है, अगर मेहनी की चालु चलन ऐसी ही है ते मैं इसकी
मुहृद्कत से बाज भाया, में ऐसी बंद्चहन औरत से बात भी
]
फ्रःः
५ पहिलत हिस्सा
डे कफ
करना पसन्द नहों करता । वाह | मरे गले में ह!थ डालते इसे'
जरा भी शर्म न मालूम हुई !!
शाड़ी देर तक देने अपने अपने भतलप के सेचते श्हे,
आखिर मेपहनी से न रहा गया, बाली, “क्ये! साहब घापने लेप
“औरी बडी बेइलती की (०
_बरेन्द्र०। यह दप £
प्ाहनी ० । में आपकी सुहव्यत से आपके यास झाकर बैहूं
आश आप इस वरह घुझ दुतकार कर उठ जाये | बया पसी के!
सम्प्रता कहते हैं !
नरेन्््र० | अगर झोरतें सै। दफे इस दरह के मखरे करें तेः
कोई हज नहीं मगर मई एक ही दफे के नखरे में रपव खममा
गया
च्स नरेन्द्र सह के इतना ही कहने से माहनी का खयाल बदके
जया और वह हँसके बे।छी :--
“खेर अब आइये बेठिये ॥० |
नरेन्द्र० । मेरा कायदा है कि नहाने के वाद मैं उस आदमी
के पास नहीं बैठता जै। विना नहाया है। ॥
मेाहनी ० । क्या छूत रूग ज्ञाती है ?
मरेन््द्र० । चाहे छूत न रंगे तै। मी ऐसा कायवा रखनें से
“बहुत कुछ फायदा है ॥ ; हे
मेशह० | (उठकर) जेर साहब में-जाकर नद्दा भातों हैं ४
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भरेल्द्रमाहली दस
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नरैन््द्र० । हां, इसके वाद फिर हमसे तुमले बातचीत होगी ॥
महनी० । (श्यामा की तरफ देखकर) में नहाने जाती हूं
तब तक तुम इनके खाने पीने का कुछ बन्देबसूत करे ॥
शयामा० । बहुत अच्छा ॥
«. मेाहनी चली गई, उसके बाद शयामा ने हाथ जे।ड़ कर जरे-
न्द्र्सिंद्द से कहा, “सुझे मालिक का हुक्म हुआ है कि आपके
धास्ते खाने पीने का वन्देवरूत करू मगर मेरा जी यहां से जाने
के नहीं चाहता क्येकि आप से पक बात कहनी बहुत जरूरी
है, अगर में यहां से जञा कर आप के भाजन का बन्देबस्त करूँ
तो फिर बात करने का मैका न रहेगा क्येंकि तब तक मेहहनी
भी आ जायगी भौर मैरी वात ऐसी है कि सियाय आपके अगर
दूसरा सुन के ते मेरी जान जाने में कोई शक न रहे ॥
नरैन्द्र० । वह कान सी बात है कहे। 0
श्याभा७। मैं इस तश्ह नहीं कहने की, हाँ आप इस वात की
कसम खाये कि किसी दूसरे से न कहेंगे ते! में जे! कुछ शुत्त भेद
' है उसे कह डाल ॥
श॒प्त भेद का नम सुनते ही नरेस्द्र सिंह चोक पड़े । बह जात
फैन सी है जिसके लिये श्यामा कसम खिलाया चाहती है, यह
', जआनने के लिये भी वेचेन है। गया । कुछ गैर कश्ने के बाद नरे-
.. नदर्सिह् नै अपनी दछबार स्थान् से निकारू की ओर इश्यामा से
कहा, दिखे! मैं क्षत्री हैं मेरे लिये इलसे बढ़ के कई कसम नहीं
$ ५, «- *
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पहिला हिस्सा 8
0:92 नाआपय कक भा
है, इसे दाथ में ले कसम खाता है कि तुम्दारी बात कभी किखी
से न कहँगा ॥०
श्यप्मार। अब मेरा ज्ञो सर गया, हां में आप से एक बाद
ओर कराया चाहती हूं॥
नरेन्द्र० । घह भी कहे! ॥ श्र
शयामा० ! अगर मेरी बात सुन कर आप यहां से भागा चाहँ
से हम देने को भी यहां से निकजझने को फिक्र करें नह ते।
आपके जाने घाद हमझेाग किसी तरह नहों बच सकतीं ॥
मरेन्द्र० ( ताउ्जुब से ) ऐसी कात बात है जिसे सुन में
यहां से भाग जाऊंगा ?
श्यामा० | घड ऐसी ही चातत है ॥
नरेन्द्र खेर में इस घात की भी कसम खाता हैँ कि अपने
साथ तुम दोनों के भी यहां से वाहर करूँगा । हाँ, पहिले यह
कहे। कि मेरे लिये तुम अपने मालिक का साथ क्यें छे।ड़ेीगी ?
श्यामा० | ईश्वर न करे ऐसी बदकार ओरव की नौकरी
मुझे करनी पड़े, न मात्यूत मैंने कैन ऐेले पाप किये हैं जिनके
बदले कई दिन इसके पांस रहने का दुःख परमे एयर ने मुझे दिया,
में इसको ऊेडी नहीं हूं मार वक्त के क्या करूं ? यह सब
आपकी ... ...इतन। कहते ही आंखें से टपाटप आंसू की बूदें
गिरने छगीं, कएठ भर आया और आवाज बन्द है। गई ॥
नरेन्द्र (हाथ धाम कर )हा दा, यह कप ६ रोती क्ये है। रे
हम क्ृ
भरेन्द्र मे। हनन
फाहए
९६.
मैं वादा करता हूं कि जहां तक होगा तुम्हारा दुःख दूर करने से '
बाज़ न आऊंगा ॥
' ; शैयामा०। आपके ते जरा ही निगाह करने से मैरा जन्म भर
का दुःख दूर हे। जयगा, नहीं मरी हुई ते। हुई हूं ॥ '
नरेन्द्र -। इसके लिये भी मैं वही कसम खाता हूँ कि अगर
मेरे किये तुख्हरा दुःख दूर हे जायगा ते कभी संह ने
फेरूंगा ॥
श्याप्ता० । ( आस पोेंछ कर और अपने के! खूब सम्हाल.
' कर ) अब ध्यान देकर छु निये। पहिले ते। यही कहना टीक हीगा
कि यह मेहनी नहीं है जिसे आप मेःहनी समझे हुए हैं ॥
नरेन्द्र० । ( चेक छाए ) है ! क्या यह मेहनी नहीं है ?
श्यामा० । नहीं ॥
* भरेद्ध०। हाय हाय | इस नाठायक ने दे पूरा धोखा दिया, .
पहिले हो मेरा जी इससे खटकता था, औरतें भो क्या हो आफत
होतो हैं! ऐसे ही की शैतानी और बदकारी कितायें में देख
देख कर ओर छोगेए से सुन सुन कर मैंने दिल में निश्चय कर...
लिया था कि कभी शादी न करूंगा, इसी सबब से मैंने अपना
देश छोड़ना मंजूर किया, फिर भी मे!हनी की मुहृच्बत में फँख
कर मुझे दुःख ही उठाना पडा॥ ह
अयामा० | नहीं, आपका ऐसा सेना मुनासिब नहीं है,
संब अररतें ऐसी ही बदकाए और नाछायक नहों होतीं, एक के